Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[२१४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[नकारादि (३५६५) निम्बादिधूपः (२)
पानीको एकत्र मिलाकर उसकी बारीक धार बन्द (र. र. । ज्वरा.)
आंख पर छोड़िये । निम्बपत्रवचाहिजसर्पमिर्मोकसर्पपैः ।
यह उपाय कफाभिष्यन्द में हितकर हैं। डाकिन्यादिहरो धूपो भूतोन्मादविनाशनः॥ । (नोट-~धूप आंख बन्द करके देनी चाहिये और
ध्यान रखना चाहिये कि आंखमें धुवां न नीमके पत्ते, पच, हाँग, सांपकी कांचली और सरसोंकी धूप (धूनी) देने से डाकिमी
जाने पावे।) आदिके उपद्रव और मूतोन्माद नष्ट होते हैं। । (३५६८) निर्गुण्डधादिधूपः (१) (३५६६) निम्बादिधूपः (३)
(ग. नि.; पृ. नि. र.; यो. र. । ज्वरा. ) (भा. प्र.; यो. र. । प्रण.) निर्गुण्डीपुरसहितः सिद्धार्थनिम्बपत्रसंयुक्तः । निम्बपत्रवचाहिङ्गुसपिलवणसर्षपैः । सर्जरसेन समेतो धृपवरः सन्धिगं हन्ति ।। धूपन कृमिरभोघ्नं प्रणकण्डूरुजापहम् ॥ संभालुके पत्ते, गूगल, सफेद सरसों, नीमके नीमके पत्ते, बच, हींग, सेंधा नमक, और
पत्ते, और राल । सब चीजें समान भाग लेफर सरसों के समभाग मिश्रित चूर्णको धीमें मिलाकर | कूटकर चूर्ण बनाव।। उसकी धूप देने से बणके कृमि, कण्डू और पीड़ा
रोगीको इसकी धूप देनेसे सन्धिगतज्वर नष्ट मष्ट होती है।
| होता है। (३५६७) निम्बादिधूपः (४)
(३५६९) निर्गुण्डयादिधूपः (२) (वं. से.; यो. र. । नेत्र.)
(ग. नि.; वृ. नि. र. । ज्वर.) निम्बार्कपत्रसम्पर्क लो, भागचतुष्टयम् ।। निर्गुण्डीपिचुमन्दकुष्ठविजयाकार्पाससिद्धार्थकैः । धूपः सर्पिः पयो भागैः कफे सेकः सुखाम्बुना।। षड्यन्थातगरामरेन्द्रतरुभिर्तिण्डमूलान्वितैः॥
नीम और आकके पत्तोंकी लुगदी के बीचमें | चण्डीयावकरुद्रमाल्यसहितैर्मध्वाज्यसंयोजितैइनसे ४ गुने लोधको रखकर गोलासा बनाकर धूपोऽयं ग्रहसन्निपातजनितां पीडां पिनष्टि क्षणात्।। उसके ऊपर मिट्टीका लेप करके पुटपाक विधिसे । । संभालके पत्ते, नीमके पत्ते, कूठ, भांग, कपास, पका लीजिए । तत्पश्चात् आंखकी पलकों पर उस सफेद सरसों, बच, तगर, देवदारु, आककी जड़, लोधकी धूनी दीजिये; अथवा घी, दूध और मन्दोष्ण | शिवलिङ्गी, कुलथ और बेलछाल के समान भाग -" सैन्धवैः" इति पाठअन्तरम् ।
मिश्रित चूर्णको शहद और घी में मिलाकर धूप २-"धमः" इति पाठान्तरम् ।
देनेसे ग्रह और सन्निपातजनित ज्वर नष्ट होता है।
For Private And Personal Use Only