Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
हतीयो भागः।
1 ११७ ]
उत्साही स्मृतिमान्मायो मेधावी खेचरः परः। यह योगवाही रस है और इसका अभ्यासी ब्रह्मास्त्रं चाप्यसिदं सादरिचक्रं च निष्फलम्।। कालवश नहीं होता। शिवशूलं वृया याति शक्रशर्स निवर्तते । (३२१९) हृतिसाररसः स्वयं स्वयम्भूर्भगवान्यदि वेति न वेत्ति बा।।
(र. र. स. । उ. ख. अ. २२) नामरो नापरः कश्चित्सूतस्यास्य महन्महः। य एनं सेवते नित्यं न स कालवर्श व्रजेत् ॥ युक्तं हि व्योमजदुत्या तुल्यांशं स्वर्णयुगसम्।। योगवाही रसः मोक्तो देवभूतिरिति स्मृतः ॥ पिष्टीकृतं चिरं पिष्ट्वा मल्लसम्पुटके लिपेत् ॥
( भारत भैषज्य रत्नाकर भाग २ प्रयोग निष्कमात्रं बलिं दत्वा शतबार पुटेततः । सं. २५७४ में कथित विधिसे बनी हुई ) ताम्र सम्यनिष्षिष्य समाल्य करण्डान्तर्विनिक्षिपेत्।। भस्मको त्रिफला, मकोय, धतूरा, भंगरा और बिजौरे
इत्युक्तो द्रुतिसारनामकरसो वन्ध्यामयध्वंसनः । नीबूके रसकी ३-३ भावना दें और फिर उसे
पुत्रीयः खलु सूतिकामयहरो दृष्यश्चिरायुः करः।। अद्रकके रसकी एक भावना देकर सम्पुटमें बन्द
सम्यक् सिद्धवलिद्रुतिपकलितो गुआमितासेवितः करके फूंक दें; एवं इसी प्रकार अद्रकके रस में ९ पुट लगावें । तत्पश्चात् यह ताम्र भस्म, लोह
कुर्यात्तीव्रतरांशुषं त्वव महारोगादिरोगाजयेत् ।। भस्म और पारद भस्म समान भाग लेकर सबको
मतः सर्वामयध्वंसी रसोय नन्दिनोदितः। एकत्र मिलाकर घोटें।
जीवत्पुत्रपदः स्त्रीणां यौवनस्थैर्यदायकः॥ __इसमें से चार रत्ती रस खिलाकर ऊपरसे
भूतप्रेतपिशाचानां भयेभ्योऽभयदायकः । सोंठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, जायफल
| जडानां दोहदानां मन्दबुदिमतामपि ॥ और लौंगका समान भाग मिश्रित ( १ माशा)
मण्डूकीरससंयुक्तो दातव्यो वचया सह । चूर्ण पानमें रखकर खिलावें एवं इसके बाद
जन्मवन्ध्या काकवन्ध्या मृत्वत्साश्च याः स्त्रियः। मुखकी शुद्धिके लिए दूसरा पान खिलावें।
तासां पुत्रोदयार्थाय शम्भुना सूचितः पुरा ॥ ___ यह रस भयङ्कर सन्निपात ज्वर, मन्दाग्नि,
अभ्रकद्रुती, शुद्ध पारा और शुद्ध स्वर्ण १-१ कुष्ठ, उन्माद, अपस्मार, खांसी, श्वास, पाण्डुरोग,
निष्क लेकर प्रथम पारे और स्वर्णको एकत्र मिलादुस्साध्य उदर व्याधि, बलि, पलित और खालित्य कर घोटें । जब दोनों मिल जाय तो उसमें अभ्रकआदि अनेकों रोगोंको नष्ट करता है । इसके द्रुति मिलाकर खूब घोटें। फिर उसे १ निष्क सेवनसे बल, पौरुष, शरीरकी कान्ति और आयु | गन्धकके बीचमें रखकर सम्पुटमें बन्द करके लघुबढ़ती है तथा मनुष्य उत्साही, मेधावान् और | पुटमें फूंकदें । इसी प्रकार गन्धकके साथ १०० स्त्रियांका प्रिय हो जाता है।
पुट दें तत्पश्चात् पीसकर कपड़छन करके रक्खें। १-पलिना रसमिति पाअन्तरम् । २...२-"लक्ष्मणारखतः पिष्ट" इति पामन्तरम् ।
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