Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ]
(३३८९) निम्बादिकाथ: (५) ( ग. नि. । ज्वर. )
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तृतीयो भागः ।
निम्बनागर पिप्पल्यो देवदारु किरातकः । गुडूची पौष्करं मूलं हितः काथः कफज्वरे ॥
नीमकी छाल, सोंठ, पीपल, देवदारु, चिरायता, गिलोय और पोखरमूलका काथ कफजज्वरको नष्ट करता है ।
(३३९०) निम्बादिकाथः (६)
(वं. से.; वृ. नि. र.; भै. र. । ज्वरा . ) निम्बविश्वामृताभीरु
शठी 'भूनिम्बपौष्करम् । पिप्पलीटहतीचेति
काथो हन्ति कफज्वरम् ॥
नीमको छाल, सांठ, गिलोय, शतावर, कचूर, चिरायता, पोखरमूल, पीपल और कटेली; इनका काथ कफ ज्वरको नष्ट करता है । (३३९१) निम्बादिकाथः (७) (ग. नि. । विस्फो. ) निम्बामृताब्दकटुकानृषधन्वयासभूनिम्बपर्पटपटोलफलत्रयाणाम् । काथो नृणामिह भवेदगतेषु पार्क विस्फोटकेष्वतिहितः कथितो भिषग्भिः ॥
नीमकी छाल, गिलोय, नागरमोथा, कुटकी, बासा, धमासा, चिरायता, पित्तपापड़ा, पटोल, हर्र, बहेड़ा और आमला । इनका काथ अपक विस्फोकमें अत्यन्त हितकारी है ।
१ यासेति पाठभेदः
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[ १५९ ]
(३३९२) निम्बादिकाथः (८) ( वृ. नि. र. यो. र.; । विस्फो. ) निम्बत्वकखादिरः सारो गुडूची शक्रजोऽथवा । काथो माक्षिकसंयुक्तो विस्फोटादिज्वरापहः ||
नीम की छाल, खदिरसार, गिलोय और इन्द्रजौ के काथमें शहद मिलाकर पीने से विस्फोटकज्वर नष्ट होता है ।
(३३९३) निम्बादिकाथ: ( ९ )
( यो त 1 त २०; वृ. यो त । त. ५९; ग. नि. । ज्वर. ) निम्बाब्ददारुकटुकात्रिफलाहरिद्रा क्षुद्रापटोलदलनिः कथितः कषायः । पेयस्त्रिदोषजनितज्वरनाशनाय काथः समं मगधया दशमूलजो वा ॥
नीमकी छाल, नागरमोथा, देवदारु, कुटकी, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, कटेली और पटोलपत्र ET का सन्निपात ज्वरको नष्ट करता है ।
दशमूलके काथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पीनेसे भी सन्निपात वर नष्ट हो जाता है । (३३९४) निम्बादिप्रयोगः (१) ( यो. र. 1 प्रदर. ) मधैर्निम्बगुडूच्योश्च रोहितस्याथ वा रसम् । कफमदरनाशाय पिबेद्वा मलयूरसम् ॥
नीम और गिलोय का अथवा रोहितक ( रुहेड़े ) या कठूमरका रस मधके साथ पीने से कफज प्रदर नष्ट होता है ।
( मात्रा - रस २ से ४ तोले तक । मद्य समान भाग )
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