Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
-
[१६६] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
(नकारादि कहोलोजीरयापाडायचाश्चैतानि मर्दयेत् । । सोंठका १ कर्ष (१॥ तोला ) चूर्ण नित्य वीर्यस्तम्भकर वृष्यं चूर्णमेतदसायनम् ॥ प्रति कामीके साथ सेवन करने से आमवात
पान, बला (खरैटी) की जड़, मूर्वा, जाय- (गठिया) और कफवातज रोग नष्ट होते है । फल, जावित्री, मुरामांसी, अपामार्ग ( चिरचिटे) (व्यवहारिक मात्रा-३ माशे । ) के बीज, काकोली, क्षीर काकोली, ककोल, खस, | (३४२१) नागरादिचूर्णम् (१) मुलैठी, और रचका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २३) मिलावें।
नागरं च हरिद्रा च कणाजाज्यजमोदिका। यह पूर्ण वीर्य स्तम्भक, वीर्य वर्द्धक और |
वचा सैन्धवं रास्ना च मधुकं सममागिकम् ।। रसायन है । ( मात्रा-१॥ से ३ माशे तक।
| लक्ष्णचूर्ण पिबेचैव सर्पिषा प्रत्यहं नरः ।
लक्ष्णचूर्णप दूषके साथ खा कर ऊपर से पान खाएं।)
एकविंशदिनैर्वातरोगान् हन्ति न संशयः॥ नोट-अपामार्ग के बीज साफ़ ( तुपरहित)
भवेच्छूतिधरश्रीमान् मेघदुन्दुभिनिस्वनः। ___ करके डालने चाहियें।
हन्ति वातामयान् सर्वान् लेहो यश्च सुखावहः।। (३४१९) नागराफलादिचूर्णम्
सांठ, हल्दी, पीपल, जीरा, अजमोद, बच, (वं. से. जलदोषा.)
सेंधा, रास्ना, और मुलैठी समान भाग लेकर चूर्ण नागरफलयोचमातपे शोषितं
बनावें । सदनु चूर्णितमेकम् ।
इसे घीके साथ २१ दिन तक सेवन करनेसे कमानुपयुअथ गुडेन वारिकर्म
समस्त वातज रोग नष्ट हो जाते हैं। कुरुते न कदापि ॥
इसके अभ्याससे मनुष्य श्रुतिधर, सुन्दर और
मेघ सदृश गम्भीर स्वर वाला हो जाता है। नारंगीका फल और चोचको धूपमें सुखाकर | समान भाग लेकर चूर्ण करें।
। (३४२२) नागरादिचूर्णम् (२)
(३. मा. । हिक्का.) इसमें से नित्य प्रति ११ तोला चूर्ण गुड़में
सनागरामया तुल्या कासश्वासौ व्यपोइति ॥ मिलाकर सेवन करनेसे परदेशका पानी बिकार
सोंठ और हर्रका समान भाग मिश्रित चूर्ण नहीं करता।
सेवन करनेसे खांसी और श्वास नष्ट होते हैं । (३४२०) नागरचूर्णम्
(मात्रा-३ माशे; अनुपान-शहद) (वं. से.; यो. र. । आमवा.; भा. प्र. । म. ख. (३४२३) नागरादिचूर्णम् (३) आमवाता.)
__(रसें. सा. सं. । ज्वराति.) कर्ष नागरचूर्णस्य काञ्जिकेन पिबेत्सदा। नागरातिविषा मुस्तं देवदारु कणा वचा । आमवातमशमनं कफवातहरं परम् ॥ यमानी बालकं धान्यं कुटजत्वक हरीतकी ।।
For Private And Personal Use Only