Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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पूर्णपकरणम् ]
सृतीयो भागः।
[१६९]
नायिकाचूर्णम्
शतावरका चूर्ण १ प्रस्थ (१ सेर-८० रसप्रकरण में देखिये ।
तोले ), गोखरु का चूर्ण १ प्रस्थ, बाराहीकन्द
( अभावमें चर्मकारालु) का चूर्ण २० पल (३४३१) नारसिंहचूर्णम्
(१०० तोले ), गिलोयका चूर्ण २५ पल, शुद्ध (ग. नि. । चूर्णा., मै. र.; र. र.; च. द. भिलावे का चूर्ण ३२ पल (२ सेर), चीतेका
__ वाजीकरण.; नपुं. भ. । त. ३ ) चूर्ण १० पल, छिलके रहित (धुले हुवे) तिलोंका प्रस्थं शतावरीचूर्ण प्रस्थं गोक्षुरकस्य च ।। चूर्ण १ प्रस्थ, सोंठ, मिर्च और पीपलका चूर्ण बाराखा विंशतिपलं गहच्याः पञ्चविंशतिः॥ ८-८ पल, खांड ७० पल, शहद ३५ पल, घी भल्लातकानां द्वात्रिंशचित्रकस्य दशैव तु ।।
१७|| पल, और विदारीकन्दका चूर्ण १ प्रस्थ । तिलानां लुधितानां च प्रस्थं दद्यात्सुचूर्णितम् ॥ इन सबको एकत्र मिलाकर चिकने पात्रमें सुरत्र्यूषणस्य पलान्यष्टौ शर्करायाश्च सप्ततिः।
| क्षित रक्खें। मासिकं शर्करार्धेन तदर्धेन च वै घृतम् ।। मात्रा २॥ तोले ( व्यवहारिक मात्रा ३ से पतापरीसमं देय विदारीकन्दचूर्णकम् ।।
६ माशे तक )। आहारादि इच्छानुसार करना एतानि सूक्ष्मचूर्णानि स्निग्वे भाण्डे निधापयेत्॥ चाहिये। पलार्षमुपयुञ्जीत यथेष्टं चात्र भोजनम् ।
इसे १ मास तक सेवन करनेसे जरा, व्याधि, एष मासोपयोगेन जरां हन्ति रुजामपि ॥
| बली, पलित, खालित्य ( गञ्ज ), प्लीह (तिल्ली) बलीपलितखालित्यप्लीहव्याधींश्च पीनसान् ।
पीनस, भगन्दर मूत्रकृच्छू, अश्मरी, १८ प्रकारके भगन्दर मूत्रकृच्छमश्मरींश्च भिनत्यपि ॥
कुष्ठ, आठ प्रकारके उदररोग, प्रमेह, कष्टसाध्य अष्टादशेव कुष्ठानि तथाष्टावुदराणि च ।। ममेहं च महाव्याधि पञ्चकासान् सुदुस्तरान् ॥
पांच प्रकारकी खांसी, ८० प्रकार के वातज रोग, अधीतिर्वातजान् रोगांश्चत्वारिंशच पैतिकान् ।।
४० प्रकार के पित्तज रोग, २० प्रकारके कफज
रोग, द्वन्द्वज रोग, समस्त सन्निपातज रोग और विंशति श्लैष्मिकांश्चैव संसृष्टान् सान्निपातिकान्
अर्श इत्यादि समस्त व्याधियां नष्ट हो जाती हैं। सर्वानशौगदान् हन्ति वृक्षमिन्द्राशनियेथा सकाञ्चनाभो मृगराजविक्रम
इसे सेवन करने वाला मनुष्य काश्चन के स्तुरगवेगो जलदौघनिःस्वनः ।। समान दीप्तिमान्, सिंहसदृश पराक्रमी, घोड़ेके स्त्रीणां शतं गच्छति सोऽतिरम्यः समान वेगगामी और गम्भीर स्वरवाला हो जाता
मुरूपवान् सत्ववतां वरिष्ठः॥ है। वह अनेकों स्त्रियों से रमण कर सकता है तथा पुमान् संजनयेदीमान् नरसिंहनिभांस्तथा । नरसिंह सदृश वीर और बुद्धिमान् पुत्र उत्पन्न नारसिंहेति विख्यातश्चूणों रोगगणापहः॥ । करता है।
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