Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(३४८८) निम्बादिघृतम् (३)
( वा. भ. । चि. अ. २१ ) निम्बामृतावृषपटोलनिदिग्धिकानाम् भागान्पृथग्दशपलान्विपचेद् घटेऽपाम् | अष्टांशशेषितरसेन पुनश्च तेन
प्रस्थं घृतस्य विपचेत्पिचुभागकल्कैः ॥ पाठाविडङ्गसुरदारुगोपकुल्या
- भैषज्य-र
भारत
द्विक्षारनागरनिशामिशिचव्यकुष्ठैः । तेजोवतीमरिचवत्सकदीप्यकानिरोहिण्यरुष्करबचाकणमूलयुक्तैः ॥
मञ्जिष्ठयातिविषया विषया यवान्या
संशुद्धगुग्गुलुपलैरपि पञ्चसंख्यैः । तत्सेवितं प्रधमति प्रबलं समीरम्
सन्ध्यस्थिमज्जगतमप्यथकुष्ठमीदृक् ॥ नाडीव्रणार्बुदभगन्दरगण्डमाला
जनूर्ध्वसर्वगदगुल्मगुदोत्थमेहान् । यक्ष्मारुचिश्वसनपीनसकासशोफ
हृत्पाण्डुरोगमदविद्रधिवातरक्तम् ||
नीमकी छाल, गिलोय, बासा, पटोल और कटेली । १०-१० पल ( हरेक ५० तोले ) लेकर सबको ३२ सेर पानी में पकावें जत्र ४ सेर पानी शेष रह जाय तो छानकर उसमें २ सेर घी और निम्न लिखित चीजोंका कल्क मिलाकर पकावें ।
कल्क द्रव्य-पाठा, बायबिडंग, देवदारु, गजपीपल, यवक्षार, सज्जीखार, सांट, हल्दी, सौंफ, चव, कूठ, मालकंगनी, काली मिर्च, इन्द्रजौ, अजमोद, चीता, कुटकी, शुद्धभिलावा, बच, पीपलामूल, मजीठ, अतीस, कलिहारीकी जड़ और अजवा
-- रत्नाकरः ।
[ नकारादि
यन । हरेकका चूर्ण १| तोला । तथा शुद्ध गूगल २५ तोले ।
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सबको एकत्र मिलाकर पकायें। जब काथ जल जाय तो घीको छानलें ।
इसके सेवन से अग्निदीप्त होती; और सन्धि, अस्थि तथा मज्जागत कुष्ठ, नाडीव्रण ( नासूर ), अर्बुद, भगन्दर, गण्डमाला, ऊर्ध्वजत्रुगत (गंलेले ऊपरके) समस्त रोग, गुल्म, अर्श, प्रमेह, यदमा, अरुचि, श्वास, पीनस खांसी, शोभ, हृद्रोग, पाण्डु, मद, विधि और वातरक्तका नाश होता है ।
( मात्रा --- १ से २ तोले तक । ) (३४८९) निर्गुण्डीघृतम् (१)
(वं. से. । कासा. )
निर्गुण्डीपत्रस्वरसेन सिद्धं सर्पिः कफोत्थं विनिहन्ति कासम् ॥
संभालुके पत्तों का स्वरस ४ सेर और १ सेर मिलाकर पकावें और घृतमात्र शेष रहने पर छान लें।
इसके सेवन से कफज खांसी नष्ट होती है। ( मात्रा - १ से २ तोले तक ) (३४९० ) निर्गुण्डीघृतम् (२)
( ग. नि.; च. द. । राजयक्ष्मा. ) समूलपत्रनिर्गुण्डीरसपकं घृतं पिबेत् । क्षतक्षीणो भवेच्छोषी सर्वातकविवर्जितः ॥
मूल और पत्र सहित संभालुको कूटकर ४
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