Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रलाकरः।
[नकारादि
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पुत्रकी प्राप्ति होती है । इसके अतिरिक्त यह हृदय- यह तैल बहुत छिद्रों वाले तथा अत्यधिक शूल, पार्श्वशूल, अर्धावभेदक ( आधासीसी), साव वाले बल्मीक (क्षुद्ररोमान्तर्गत पिडिका अपची, गण्डमाला, वातरक्त, हनुग्रह, कामला, विशेष ) को नष्ट करता है । पाण्डु और अश्मरी इत्यादि रोगोंको भी नष्ट (३५०७) निम्बतैलयोगः करता है।
(. मा.; वृ. नि. र. । क्षुद्र.; ग. नि. । रसाय.) (३५०५) निम्बतलम् (१)
निम्बस्य तैलं प्रकृतिस्थमेव (वै. म. । पटल ११)
नस्य विधेयं विधिना यथावत् । निम्नच्छदस्वरससाधितमर्कदुग्ध
मासेन गोक्षीरजो नरस्य रक्ताश्वमारमुकुलोषणकल्कसिदम् ।
चिरात्मभूत पलितं निहन्ति ॥ सैलं निहन्ति सहसेव समस्तपामाम् ॥
१ मास तक नीमके तैलकी नस्य लेने और ___ नीमके पत्तोंका स्वरस ८ सेर, सरसोंका तैल | केवल गायका दूध पीनेसे बहुत पुराना पलित रोग २ सेर, आकका दूध, लाल कनेरकी जड़, दन्ती- (बालोंका सफेद होना ) भी नष्ट हो जाता है। मूल और काली मिर्च का कल्क २॥-२॥ तोले
। (३५०८) निम्मवीजतैलम् लेकर सबको एकत्र मिलाकर रस जलने तक
(4. से.; ई. मा. । क्षुद्र.) पकावे। __यह तैल पामा को नष्ट करता है। निम्बस्य बीजानि हि भावितानि
भृत्स्य तोयेन तयाऽशनस्य । (३५०६) निम्बतलम् (२)
| तेलश तेषां विनिहन्ति नस्या(यो. त. । त. ६८)
दुग्धाममोक्तुः पलितं समूलम् । मनाशिलालभल्लातसूक्ष्मैलागुरुचन्दनैः।
नीमके बीजोंको भंगरे के स्वरस और असना जातीपल्लपयुक्तश्च निम्बतैलं विपाचयेत् ॥
वृक्षके काथकी अनेक भावनाएं देकर उनका तेल पला नासालाप
निकलवा लीजिये । इस तैलकी नस्य लेने और मनसिल, हरताल, भिलावा, छोटी इलायची, केवल दूध भात पर रहनेसे पलितरोग समूल नष्ट अगर, सफेद चन्दन और चमेलीके पत्ते समान हो जाता है। भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे, नीमका तैल २ ।
निरामिषमहामावलम् सेर और उपरोक्त चीज़ांका काथ ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और पानी जल
(भै. र.) जाने पर तैलको छान लें।
महामापतेसम् (निरामिष ) देखिए ।
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