Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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यदि सन्निपात ज्वर में गलेमें सूजन हो जाय तो सोंठ, देवदारु, रास्ना और चीता समान भाग लेकर पानीके साथ महीन पीसकर लेप करना चाहिये ।
(३५३२) नागरादिलेप: (२) (नपुंसका. । त. ६)
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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ।
नागरं देवसुमनमाकारकरभं तथा । चूर्णितं मधुयोगेन मासैकं लेपयेद्बुधः ताम्बूलैर्वेष्टितं कृत्वा पुरुषार्थप्रदायकम् ।।
सांठ, लैांग, और अकरकरा समान भाग लेकर अत्यन्त महीन पीसकर शहद में मिलाकर मल्हम बना लीजिये ।
रात्रिको सोते समय इन्द्री पर इसका लेप करके ऊपरसे पान बांध दीजिये । इसी प्रकार १ मास तक करनेसे नपुंसकता नष्ट हो जाती है । ( नोट - पानके ऊपर कपड़े की पट्टी लपेट कर कच्चे सूत से ढीला बांधना चाहिये । यथा सम्भव ठण्डे पानी से इन्द्रीको बचाना चाहिये) (३५३३) नारोपयसादिप्रयोगः
( वै. म. र. | प. १२ ) सीमन्तिनीनां पयसा प्रलिम्पे
audi शताsi लिकुचोदकेन । जानुबाहुप्रभवानिलघ्ने
स्यातां क्रमन्युत्क्रमलेपिते वै ॥ सोंठको स्त्रीके दूध में पीसकर या सोये को लकुचके रसमें पीसकर लेप करनेसे जानु और बाहुगत वायु नष्ट होता है ।
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[ नकारादि
(३५३४) निलादिलेप: (१)
( ग. नि. । ग्रन्ध्य. शा. सं. । उ. अ. ११ ) निचुलं शिग्रुमूलानि दशमूलमथापि वा । आलेपनं च गण्डेषु सुखोष्णन्तु प्रशस्यते ॥
हिज्जल, और सहजनेकी जड़की छाल या दशमूल को पानीके साथ पीसकर मन्दोष्ण करके लेप करनेसे गलगण्ड रोग नष्ट हो जाता (३५३५) निचुलादिलेप: (२)
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( वा. भ. । उ. अ. २२ ) निचुलं कटभी मुस्तं देवदारु महौषधम् । वचा दन्ती च मूर्वा च लेपः कोष्णोऽतिशोफहा ।।
हिज्जल, अरलुकी छाल, नागरमोथा, देवदारु,
सोंठ, बच, दन्तीमूल और मूर्वा । सब चीजें समान भाग लेकर पानी के साथ महीन पीसकर मन्दोष्ण करके लेप करनेसे गलेकी अत्यधिक प्रवृद्ध सूजन नष्ट होती है 1
(३५३६) निम्बजलादिलेप:
(वं. से. | क्षुद्ररो.) निम्बोदकेन लवणैःप्रलेपोऽश्वशकृद्रसैः ॥
नीम के पत्तों का रस, सेंधा नमकका चूर्ण और घोड़े की लीदका रस एकत्र मिलाकर लेप करनेसे अरुषिका नष्ट हो जाती है । (३५३७) निम्बदलादिलेप:
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(शा. सं. । म. अ. ५; भा. प्र. । ख. २ ब्रणशो.) लेपानिम्बदलैः कल्को व्रणशोधनरोपणः । भक्षणाच्छर्दिकुष्ठानि पित्तश्लेष्मकृमीञ्जयेत् ॥