Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहमकरणम्]
तृतीयो भागः।
[१८१]
यह अवलेह बलकारक, वर्णशोधक, आयु- । पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छानकर वर्द्धक तथा बली पलित और आमवात नाशक है। उसमें २ सेर पुराना गुड़ मिलाकर पकावें । जब ( मात्रा-१ से २ तोले तक।)
करछी को लगने लगे तो उसमें ८ पल पीपल
और १-१ पल (५-५ तोले ) दालचीनी, तेज(३४६७) निदिग्धिकाद्योऽवलेहः
पात इलायची तथा कालीमिर्चका चूर्ण मिलावें ( ग. नि. । लेहा.; भा. प्र. ख. २.; वृ. नि. र.; | और ठण्डा होने पर उसमें ४० तोले शहद डाल
वं. से. । स्वरभे.; ३. यो. त. । त. ८१ ) कर सुरक्षित रक्खें । निदिग्धिका पलशतं तदर्ध ग्रन्धिकस्य च । | यह स्वर और बुद्धि वर्द्धक तथा प्रतिश्याय, चित्रकस्य तदर्धश्च दशमूलं च तत्समम् ॥ खांसी, श्वास, अग्निमांद्य, अर्श, गुल्म, प्रमेह, गलद्रोणद्वये ऽम्भसः काथ्यमष्टभागावशेषितम् । रोग, आनाह, मूत्रकृच्छ्, ग्रन्थि और अर्बुद पूते क्षिपेत्तदर्धे तु पुराणस्य गुडस्य च ।।। नाशक है । सर्वमेकत्र कृत्वा तु लेहवत्साधु साधयेत् ।
( मात्रा १ से २ तोले तक । ) अष्टौ पलानि पिप्पल्यस्त्रिजातत्रिपलं तथा ॥ मरिचानां पलं चैकं सर्वमेकत्र चूर्णयेत । (३४६८) निशाधवलेहः मधुनः कुडवं दत्त्वा भक्षयेत यथा बलम् ॥
(वं. से. । बाल. ) स्वरबुद्धिकरं चैव प्रतिश्यायहरं परम् । निशा कृष्णाअनं लाजा शृङ्गीमरिचमाक्षिकैः । कासश्वासाग्निमान्यार्थीगुल्ममेहगलामयान् ॥ लेहः शिशोविंधातव्यश्छर्दिकासरुजापहः ॥ आनाहमूत्रकृच्छ्रांश्च हन्याद्ग्रन्थ्यर्बुदानि च ॥ हल्दी, पीपल, सुरमा, धानकी खील, काकड़ा
कटेली १०० पल (६। सेर ), पीपलामूल सिंगी, और कालीमिर्चके समान भाग मिश्रित ५० पल, चीता २५ पल, और दशमूल २५ पल चूर्णको शहदमें मिलाकर चटाने से बालकांकी लेकर सबको अधकुटा करके ६४ सेर पानीमें । छर्दि और खांसी नष्ट होती है।
इति नकाराधवलेहप्रकरणम् ।
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