Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ नकारादि
भारत-भैषज्य रत्नाकर।। अथ नकारादिपाकप्रकरणम्
(३४६९) नारिकेलखण्डः । (३४७०) नारिकेलखण्डपाक: (च. द.; भै. र. । परि. शू.: यो. र.; ग. नि. (वृ. यो. त.। त. १२२; वं. से.; वै. र. । अम्लशूला.; यो. त. ।त. ६३; वृ. यो.। त. १२२) पित्त.; र. र. । शूला.; भा. प्र. । ख. २ अम्लपि.) कुडवमितमिह स्यान्नारिकेलं म्रपिटम कुडवं नारिकेलस्य सूक्ष्म दृषदि पेषितम् ।
पलपरिमितसर्पिः पाचितं खण्डतुल्यम् । शुभ्रखण्डस्य कुडवं सबेमेतचतुर्गुणम् ॥ निजपयसि तदेतत्मस्थमात्र विपकम् आलोच्य नारिकेलस्य जले मृदग्निना पचेत् ।
गुडवदथसुशीते शाणभागान्क्षिपेछ । | नारिकेलजलालाभे गव्ये पयसि सत्पचेत् ।। धन्याकपिप्पलिपयोदतुगाद्विजीरैः। | पलमात्रस्तदर्थोऽपि भक्षितः प्रत्यहं नरैः।
साकं त्रिजातमिभकेशरवद्विचूर्ण्य । | नारिकेलकखण्डोऽयं पुंस्त्वनिद्रावलपदः ।। हन्त्यम्लपित्तमरुचि क्षयमस्रपित्तम् अम्लपित्तं रक्तपित्तं शूल परिणामजम् ।
शूलं वर्मि सकलपौरुषकारि पुंसाम् । क्षय क्षपयति क्षिप्रं शुष्कं दानिलो यथा ॥ ४० तोले नारयलकी गिरी (गोले ) को (पलमात्रगन्यघृतेन नारिकेलस्य भर्जन पत्थर पर अत्यन्त महीन पीसकर १० तोले धीमें | कर्तव्यमिति सम्पदायः) भून लें। फिर २ सेर नारयलके दूध में यह गोला ४० तोले नारयलकी गिरी (गोले) को पत्थर और २० तोले खांड मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें।
पर अत्यन्त महीन पीसकर (१० तोले घीमें भूनले जब गुड़के समान गाढ़ा हो जाय तो ठण्डा करके फिर) इसे ६ सेर नारयलके पानी (अभावमें गोउसमें ५.-५ माशे धनिया, पीपल, नागरमोथा, दुग्ध) में मिलावें और उसमें २० तोले खांड मिलाबसलोचन, सफेद जीरा, काला जीरा, और चातु
कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो र्जात (दालचीनी, इलायची तेजपात, और नाग
| ठण्डा करके चिकने बरतनमें भरकर रखदें। केसर समान भाग मिश्रित) का चूर्ण मिला।।
इसमेंसे नित्यप्रति ५ तोले या २॥ तोले यह अम्लपित्त, अरुचि, रक्तपित्त, क्षय, शूल,
खानेसे पुरुषत्व, निद्रा और बलकी वृद्धि होती तथा भौर वमनको नष्ट करता तथा पौरुषको बढ़ता है।
| अम्लपित्त, रक्तपित्त, परिणाम शूल, और क्षयका (मात्रा-१ से २ तोलेतक । अनुपान–दूध ) । शीवही नाश हो जाता है ।
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