Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत
- भैषज्य- - रत्नाकरः ।
अथ नकाराद्यवलेहप्रकरणम्
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(३४६२) नवनीतावलेह : (१) ( ग. नि. । राजय . ) शर्करामधुसंयुक्तं नवनीतं लिहन् क्षयी | क्षीराशी लभते पुष्टिमतुल्ये चाज्यमाक्षिके ॥
खांड, शहद और नवनी घी ( नवनीतमक्खन ) समान भाग मिलाकर या घी और शहद असमान मात्रा में मिलाकर चाटने और आहारमें केवल दूध पीनेसे क्षयका रोगी पुष्ट हो जाता है । (३४६३) नवनीतावलेह : (२)
( वृ. यो. त. । त. ६४; भा. प्र म । अति. ) होती है । गोदुग्धं नवनीतं च मधुना सितया सह । लीढं रक्तातिसारे तु ग्राहकं परमं मतम् ॥
नवनीत (नौनी घी), शहद और खांड समान भाग मिलाकर चाटकर ऊपरसे गायका दूध पीने से रक्तातिसार बन्द हो जाता है ।
( मात्रा -- नवनीतादि हरेक २ तोले । ) (३४६४) नागकेसराद्यवलेहिका
( वृ. यो त । त. ६९ ) नागकेसर भल्लातनवनीततिलैः कृतः । her: शुक्तिमितो लीढो रक्ताशः कुलकण्डनः ॥ नागकेसर, शुद्ध भिलावा और तिल । सब चीजें समान भाग लेकर पीसकर नवनीत ( नौनी घी) में मिलाकर चाटने से अर्श नष्ट होती है । मात्रा - २॥ तोले ।
व्यवहारिक मात्रा --- ६ माशे )
नोट- जिन्हें भिलावा अनुकूल न आता हो उन्हें यह प्रयोग सेवन न करना चाहिये । (३४६५) नागरादिलेह:
( वं. से. । बालरोग. ) नागरं पिप्पली पाठा भाङ्ग च मरिचानि च । लेहोयं मधुना कासश्लेष्मछर्दिनिसूदनः ॥
सोंठ, पीपल, पाठा, भरंगी और काली मिर्च का समभाग मिश्रित चूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बालकों की खांसी और कफज छर्दि नष्ट
(३४६६) नागरायोsवलेह:
(ग. नि. । लेहा. )
[ नकारादि
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नागरस्य पलान्यष्टौ घृतस्य पलविंशतिः । क्षीरद्विप्रस्थसंयुक्तं खण्डस्यार्धशतं तथा ॥ व्योषं त्रिजातकं चैव पलांशमुपकल्पयेत् । बल्यञ्च वर्ण्यमायुष्यं वलीपलितनाशनम् ॥ आमवातप्रशमनं सौभाग्यकरमुत्तममम् ॥
८ पल सोंठ के चूर्णको २ सेर ( १२० तोले ) दूध में पकावें । जब मावा तैयार हो जाय तो उसमें २० पल ( २ ॥ सेर ) घी डालकर भूनें फिर ५० पल ( ३ सेर १० तोले ) खांड की चाशनी करके उसमें यह मावा तथा १ -१ पल ( ५-५ तोले ) सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और इलायचीका चूर्ण मिलाकर चिकने पात्र में सुरक्षित रक्खें ।