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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [१८० ] www.kobatirth.org भारत - भैषज्य- - रत्नाकरः । अथ नकाराद्यवलेहप्रकरणम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४६२) नवनीतावलेह : (१) ( ग. नि. । राजय . ) शर्करामधुसंयुक्तं नवनीतं लिहन् क्षयी | क्षीराशी लभते पुष्टिमतुल्ये चाज्यमाक्षिके ॥ खांड, शहद और नवनी घी ( नवनीतमक्खन ) समान भाग मिलाकर या घी और शहद असमान मात्रा में मिलाकर चाटने और आहारमें केवल दूध पीनेसे क्षयका रोगी पुष्ट हो जाता है । (३४६३) नवनीतावलेह : (२) ( वृ. यो. त. । त. ६४; भा. प्र म । अति. ) होती है । गोदुग्धं नवनीतं च मधुना सितया सह । लीढं रक्तातिसारे तु ग्राहकं परमं मतम् ॥ नवनीत (नौनी घी), शहद और खांड समान भाग मिलाकर चाटकर ऊपरसे गायका दूध पीने से रक्तातिसार बन्द हो जाता है । ( मात्रा -- नवनीतादि हरेक २ तोले । ) (३४६४) नागकेसराद्यवलेहिका ( वृ. यो त । त. ६९ ) नागकेसर भल्लातनवनीततिलैः कृतः । her: शुक्तिमितो लीढो रक्ताशः कुलकण्डनः ॥ नागकेसर, शुद्ध भिलावा और तिल । सब चीजें समान भाग लेकर पीसकर नवनीत ( नौनी घी) में मिलाकर चाटने से अर्श नष्ट होती है । मात्रा - २॥ तोले । व्यवहारिक मात्रा --- ६ माशे ) नोट- जिन्हें भिलावा अनुकूल न आता हो उन्हें यह प्रयोग सेवन न करना चाहिये । (३४६५) नागरादिलेह: ( वं. से. । बालरोग. ) नागरं पिप्पली पाठा भाङ्ग च मरिचानि च । लेहोयं मधुना कासश्लेष्मछर्दिनिसूदनः ॥ सोंठ, पीपल, पाठा, भरंगी और काली मिर्च का समभाग मिश्रित चूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बालकों की खांसी और कफज छर्दि नष्ट (३४६६) नागरायोsवलेह: (ग. नि. । लेहा. ) [ नकारादि For Private And Personal Use Only नागरस्य पलान्यष्टौ घृतस्य पलविंशतिः । क्षीरद्विप्रस्थसंयुक्तं खण्डस्यार्धशतं तथा ॥ व्योषं त्रिजातकं चैव पलांशमुपकल्पयेत् । बल्यञ्च वर्ण्यमायुष्यं वलीपलितनाशनम् ॥ आमवातप्रशमनं सौभाग्यकरमुत्तममम् ॥ ८ पल सोंठ के चूर्णको २ सेर ( १२० तोले ) दूध में पकावें । जब मावा तैयार हो जाय तो उसमें २० पल ( २ ॥ सेर ) घी डालकर भूनें फिर ५० पल ( ३ सेर १० तोले ) खांड की चाशनी करके उसमें यह मावा तथा १ -१ पल ( ५-५ तोले ) सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और इलायचीका चूर्ण मिलाकर चिकने पात्र में सुरक्षित रक्खें ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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