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तृतीयो भागः ।
मकरणम्.]
गिलोय, शुद्ध मीठा तेलिया ( वछनाग ), पटोल, नीमकी छाल, हर्र, बहेड़ा, आमला, खैरसार और अमलतास एक एक भाग लेकर कूटकर सबको चार गुने पानी में पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो उसे छानकर उसमें १ भाग शुद्ध गूगल मिला कर पुनः पकावें । जब गाढ़ा हो र चिकने पात्रमें
भरकर रक्खे ।
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( मात्रा - १ से २ मासे तक । अनुपान -
उष्णजल )
इनके सेवन से कुष्ट, भगन्दर और दुष्ट नाड़ीमण ( नासूर ) नष्ट होता है ।
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(३४६१) निम्बादिगुग्गुलुः
( वृ. नि. र. । शिरो रोग. )
निम्बत्वक त्रिफलावासाचूर्ण कटुपटोलिका । तोयैश्चतुर्गुणे काये पादांश वस्त्रगालितम् ।। आदाय गुग्गुलं तुल्यं क्षिप्त्वा तस्मिन्पुनः पचेत् । पिण्डितं भक्षयेत्कर्षे स्निग्धमुष्णं च भोजयेत् ॥
यह गुग्गुलु विष, विसर्प, और अठारह वातश्लेष्मोत्थितां पीडां दुःसहां च शिरोरुजम् ।।
प्रकारके कुष्ठोंको नष्ट करता है ।
नीमकी छाल, हर्र, बहेड़ा, आमला, बासा और कड़वा पटोल, १-१ भाग लेकर सबको कूटकर चार गुने पानी में पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रहे तो उसे छानकर उसमें ६ भाग शुद्ध गूगल मिलाकर पुन: पकावें । जब गाढ़ा हो
(१४६०) नवकार्षिकगुग्गुलुः
( यो त । त. ६१.; बृ. यो. त. । त. ११६; मो. २.१ भै. र.; वं. से.; वै. रह.; भा. प्र. स्व. २; ग.नि.; वृं. मा. र. र. । भगन्दर . ) त्रिफलापुरुकृष्णानां त्रिपञ्चकभागयोजितागुटिका जाय तो उतारकर गोलियां बना लें
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कुभगन्दरनाडीदुष्टत्रण विशोधिनी कथिता ॥
हर्र, बहेड़ा, आमला, और पीपलका चूर्ण १ - १ भाग तथा शुद्ध गूगल ५ भाग लेकर test एकत्र कूटकर गोलियां बनावें ।
इसमें से नित्य प्रति १ कर्ष ( ११ तोला ) प्रतिदिन सेवन करनेसे वातकफज भयङ्कर शिरपीड़ा नष्ट होती है । पथ्य - उष्ण और स्निग्ध पदार्थ
( व्यवहारिक मात्रा - २ - ३ माशे । अनुपान - उष्णजल )
इति नकारादिगुग्गुलुमकरणम् ।
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