Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[११९]
सोंठके काथ और शहदमें क्रमशः सात सात बार | अदरकके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बुझावें । फिर उसे लोहपात्रमें पिघलाकर उसमें | उसके बराबर पारा मिलाकर गोली बनालें
इनके सेवनसे नवीन ज्वर नष्ट होता है।
( अनुपान-अदरकका रस ।) इसे मुंहमें रखनेसे दांतोंके समस्त रोग नष्ट |
(३२२३) द्विहरिद्राचं लौहम् होते और दांत मजबूत होते हैं।
( रसें. चिं. । अ. ९; र. का. धे.) (३२२२) बिभुजो रसः
लौहचूर्ण निशायुग्मं त्रिफलां कटुरोहिणीम् । (र. रा. सु. । ज्वर.) पलिह्य मधुसर्पिो कामलात सुखी भवेत् ।। म्लेच्छादद्विगुणजैपालं माग्वदरोग निवारयेत लोहभस्म, हल्दी, दारुहल्दी, हरे, बहेड़ा,
| आमला, और कुटकीका चूर्ण समान भाग लेकर शुद्ध हिंगुल (शंगरफ़) १ भाग और शुद्ध सबको एकत्र मिलाकर घी और शहदके साथ जमालगोटा २ भाग लेकर दोनोंको नीबूके रस या | चाटने से कामला रोग नष्ट होता है।
इति दकारादिरसप्रकरणम् ।
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अथ दकारादिमिश्रप्रकरणम्
(३२२४) दन्तधावनयोगः
पूर्व दिशामें उगे हुवे सफेद संभालुकी जड़(ग. नि.; रा. मा. । मुख.) | को बालकके गले में बांधनेसे दांत निकलनेके दौर्गन्ध्यमुखरोगघ्नं कटुतिक्तकषायकम् ।।
समय होने वाले समस्त रोग अवश्य ही नष्ट हो अभ्यस्यमानं तैलाक्तमन्वहं दन्तधावनम् ॥
जाते हैं। ___कटु ( चरपरे ), तिक्त (कड़वे) और । (३२२६) दन्तो दगदान्तकक्रिया कसैले वृक्षांकी दातौनको तेल लगाकर उससे नित्य (धन्वन्तरि । बालरोग.) प्रति दांत साफ़ करनेसे मुखकी दुर्गन्ध और मुख- | दन्तपाली तु मधुना चूर्णेन प्रतिसारयेत् । रोग नष्ट होते हैं।
धातकीपुष्पपिप्पलीधात्रीफलरसेन वा ॥ (३२२५) दन्तोद्भेदकः
दन्तोत्यानभवा रोगाः पीडयन्ति न बालकम् । ( यो. त. । त. ७७ ) जाते दन्ते हि शाम्यन्ति यतस्तद्धेतुकागदाः ।। प्राचीगतं पाण्डुरसिन्दुवारमूलं
जब बालकके दांत निकलने वाले हो तो शिशूनां गलके निबद्धम् । मसूढ़ों पर चूनेको शहदमें मिलाकर मलें या धायके 'करोति दन्तोद्भववेदनायाः
फूल, और पीपलके पूर्णको आमलेके रसमें मिलानिःसंशयं नाशमकाण्ड एव ॥ J कर मलें। १॥ हन्न्याशु दन्तोद्भववेदनां च निःशेषमेकाण्डकुरण्डमेव इति पाठान्तरम् ।
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