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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। [११९] सोंठके काथ और शहदमें क्रमशः सात सात बार | अदरकके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बुझावें । फिर उसे लोहपात्रमें पिघलाकर उसमें | उसके बराबर पारा मिलाकर गोली बनालें इनके सेवनसे नवीन ज्वर नष्ट होता है। ( अनुपान-अदरकका रस ।) इसे मुंहमें रखनेसे दांतोंके समस्त रोग नष्ट | (३२२३) द्विहरिद्राचं लौहम् होते और दांत मजबूत होते हैं। ( रसें. चिं. । अ. ९; र. का. धे.) (३२२२) बिभुजो रसः लौहचूर्ण निशायुग्मं त्रिफलां कटुरोहिणीम् । (र. रा. सु. । ज्वर.) पलिह्य मधुसर्पिो कामलात सुखी भवेत् ।। म्लेच्छादद्विगुणजैपालं माग्वदरोग निवारयेत लोहभस्म, हल्दी, दारुहल्दी, हरे, बहेड़ा, | आमला, और कुटकीका चूर्ण समान भाग लेकर शुद्ध हिंगुल (शंगरफ़) १ भाग और शुद्ध सबको एकत्र मिलाकर घी और शहदके साथ जमालगोटा २ भाग लेकर दोनोंको नीबूके रस या | चाटने से कामला रोग नष्ट होता है। इति दकारादिरसप्रकरणम् । + अथ दकारादिमिश्रप्रकरणम् (३२२४) दन्तधावनयोगः पूर्व दिशामें उगे हुवे सफेद संभालुकी जड़(ग. नि.; रा. मा. । मुख.) | को बालकके गले में बांधनेसे दांत निकलनेके दौर्गन्ध्यमुखरोगघ्नं कटुतिक्तकषायकम् ।। समय होने वाले समस्त रोग अवश्य ही नष्ट हो अभ्यस्यमानं तैलाक्तमन्वहं दन्तधावनम् ॥ जाते हैं। ___कटु ( चरपरे ), तिक्त (कड़वे) और । (३२२६) दन्तो दगदान्तकक्रिया कसैले वृक्षांकी दातौनको तेल लगाकर उससे नित्य (धन्वन्तरि । बालरोग.) प्रति दांत साफ़ करनेसे मुखकी दुर्गन्ध और मुख- | दन्तपाली तु मधुना चूर्णेन प्रतिसारयेत् । रोग नष्ट होते हैं। धातकीपुष्पपिप्पलीधात्रीफलरसेन वा ॥ (३२२५) दन्तोद्भेदकः दन्तोत्यानभवा रोगाः पीडयन्ति न बालकम् । ( यो. त. । त. ७७ ) जाते दन्ते हि शाम्यन्ति यतस्तद्धेतुकागदाः ।। प्राचीगतं पाण्डुरसिन्दुवारमूलं जब बालकके दांत निकलने वाले हो तो शिशूनां गलके निबद्धम् । मसूढ़ों पर चूनेको शहदमें मिलाकर मलें या धायके 'करोति दन्तोद्भववेदनायाः फूल, और पीपलके पूर्णको आमलेके रसमें मिलानिःसंशयं नाशमकाण्ड एव ॥ J कर मलें। १॥ हन्न्याशु दन्तोद्भववेदनां च निःशेषमेकाण्डकुरण्डमेव इति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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