SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । १२०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [दकारादि दांत निकलनेके समय होने वाले रोग बाल- | मिलाकर आस्थापन बस्ति करानेसे कफ, पाण्डु, कोंको कोई विशेष हानि नहीं पहुंचाते क्यों कि मद, आलस्य, मूत्रावरोध, आम, आटोप, अपची, बे, दांत निकल आनेके पश्चात् स्वयं ही शान्त | कफजगुल्म, और कृमि विकार नष्ट होते हैं । हो जाते हैं। (३२२९) दशाङ्गागदः (३२२७) दन्त्यादिवर्ती (आ. वे. वि. । चि. ख. अ. ८२; (वृ. नि. र. । आना.) वं. से. । बाल.) विपाच्य मूत्राम्लरसेन दन्ती वचाहिङ्गविडङ्गानि सैन्धवं गजपिप्पली । ... पिण्डीतकृष्णाविडकुष्ठधूमान् । पाठा प्रतिविषा व्योषं काश्यपेन विनिम्मितम्॥ वर्ति कराङ्गुष्ठनिभा घृताक्तां दशामगदं पीत्वा सर्वकीटविर्ष जयेत् ।। गुदे रुजानाहहरी विदध्यात् ॥ बच, हींग, बायबिडंग, सेंधा, गजपीपल, पाठा, दन्तीमूल, तगर, पीपल, विडनमक, कूठ और अतीस, सांठ, मिर्च, और पीपल । सब समान घरका धुवां समान भाग लेकर चूर्ण करके सबको | भाग लेकर चूर्ण करें। गोमूत्र और नीबूके रस या काजी आदि किसी इस दशाङ्ग अगदको पीनेसे हर प्रकारका अन्य अम्लद्रवमें पकाकर गाढ़ा करें और उसकी | कीटविष नष्ट होता है। हाथके अंगूठे के बराबर बत्तियां बनावें। (३२३०) दार्वीरसक्रिया। इनमेंसे एक बत्ती को घी लगाकर गुदामें (भा. प्र.। ख. २ मु. रो.) रखनेसे उदरशूल और अफारा नष्ट होता है। मुखपाके प्रयोक्तव्यः सक्षौद्रो मुखधावने। (३२२८) दशमूलबस्तिः स्वरसः कथितो दाा घनीभूतो रसक्रिया ॥ (सु. सं. । चि.) सक्षौद्रा मुखरोगासग्दोषनाडीव्रणापहा ॥ दशमूलीनिशाबिल्वपटोलत्रिफलामरैः । मुख पाकमें, दारु हल्दीके स्वरसमें शहद फयितैः कल्कपिष्टैस्तु मुस्तसैन्धवदारुभिः॥ मिलाकर उसके कुल्ले करने चाहिये और दारुहल्दी . पाठामागधिकेन्द्रावैस्तैलक्षारमधुप्लुतैः ।। के काथको पुनः पकाकर गाढ़ा करके उसमें कुर्यादास्थापनं सम्यग्भूत्राम्लफलयोजितम् ॥ | शहद मिला कर उसका लेप करना चाहिये । कफपाण्डुमदालस्यमूत्रमारुतसंझिनाम् । | इससे मुखरोग, रक्तविकार और मुखका नाडीव्रण आमाटोपापचीश्लेष्मगुल्मकृमिविकारिणाम् ॥ ( नासूर ) नष्ट होता है। दशमूल, हल्दी, बेलगिरी, पटोल, त्रिफला । (३२३१) दाादिगण्डूषः और देवदार के काथमें नागर मोथा, सेंधानमक, । (यो. र. । मुख.) देवदार, पाठा, पीपल और इन्द्रजौका कल्क तथा | दार्वीयष्टयऽभयाजातीपत्रसौदैस्तु धावनम् । तैल, यवक्षार, शहद गोमूत्र, कांजी और मैनफल । अश्वत्यत्वग्दलौद्रेर्मुखपाके प्रलेपनम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy