Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१४७]
विशोष्य तं धमेत्गाद साधैकं घटिकावधि। रसेन वा दाडिममातुलुङ्गयातस्मादुद्धृत्य तं भित्वा शीतलाङ्गाश्च मूपिकाम्।। श्चूर्ण सिलाढयं च सपिनशूले । धातुबद्धरसस्सोऽयं सर्वरोगनिकृन्तनः।।
आमला, लोह भम्म, हर्र, सेठि, मिर्च और शुद्ध गन्धक, शुद्ध मनसिल या सीसाभस्म, पीपलका चूर्ण समान भाग लेकर सबको १ दिन सोना मक्खी भस्म या लोह भम्म और अभ्रक | अनार या बिजौरे के रसमें घोटें। भस्म १-१ भाग तथा शुद्ध पारा इन सबके बराबर
इसे ( समान भाग) खांडमें मिलाकर खानेते लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और !
पित्तज शूल नष्ट होता है। उसमें उपरोक्त औषधे तथा पारेका चौथा भाग !
( मात्रा--१--१॥ माशा । अनुपान जल।) सुहागेकी खील मिलाकर १-१ दिन हारसिंगार। या करेलेके रस तथा द्रवन्ती और चौलाईके रसमें। (३३२९) धात्रीलोहम् (१) घोटें । फिर इसमें इसका आधा भाग मण्डूर भस्म । (र.र. रसा. । उपदे. ६; धन्व.; र. र. । वाजीक.) मिलाकर एक दिन घोटें । तत्पश्चात् इसमें उप- धात्रीफलस्य चूर्णन्तु भावयेत्तत्फलद्रवैः । रोक्त ओषधियोंका रस मिलाकर धूपमें रखदें। एकविंशतिवारान् वै शोष्यं पेष्यं पुनः पुनः ।। (रस इतना डालना चाहिये कि औषधके २-३ तत्पादांशं मृत लोहं मध्वाज्यशर्करान्वितम् । अंगल ऊपर आ जाय । ) अब इस समस्त औष- पलैकं भक्षयेन्नित्यं सिताक्षीरं पिबेदनु । धका गोला बनाकर सुखालें और ( उसे बटादिके धात्रीलोहप्रभावेण रमयेत्कामिनीशतम् ॥ पत्तोंमें लपेटकर ) उसपर समान भाग मिश्रित हर्र ___आमलेके चूर्ण को उसीके रसमें घोटकर सुखावें, और मिट्टीको पानीमें पीसकर लेप करदें, फिर उस- और इसी प्रकार २१ भावना देकर उसमें उसप्ते पर एक अंगल मोटी कपर मिट्टी करके सुखालें । चौथाई लोह भस्म मिला। इसे शहद, घी और इसे मूषामें बन्द करके १॥ घड़ी तक तीब्राग्निमें ! खांड समानभाग मिश्रित ५ तोलेके साथ मिलाकर पका और स्वांगशीतल होनेपर रसको निकालकर सेवन करनेसे १०० स्त्रियांसे रमण करनेकी शक्ति पीस लें।
प्राप्त होती है। यह रस समस्त रोगोंको नष्ट करता है।
( मात्रा-आधेसे १ माशे तक) (मात्रा १ रत्ती।) (३३२८) धात्रीफलादिचूर्णम्
(३३३०) धात्रीलोहम् (२) (हा. सं. । स्था. ३ अ. ७)
(भै. र.; रसे. सा. पं.; र. रा. सु.; धन्वं. । शूला.) धात्रीफलं लोहरजश्च पथ्या
१कुडवं शुद्धमण्डूरं यवञ्च कुडवन्तथा । व्योषं समांशेन विभाव्य तन्तु । पाकार्थश्च जलं प्रस्थं चतुर्भागावशेषितम् ॥ १॥ त्रिफलाद्वैः" इति पाठान्तरम्.
१ षटपलभिति पाठान्तरम् ।
जी
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