Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रप्रकरणम् ]
आमलेके ४ सेर चूर्णको आमले ही के रसकी अनेक भावनांए देकर उसमें ४-४ सेर शहद और घी तथा ४० तोले पीपलका चूर्ण और १ सेर खांड मिलाकर चिकने बरतन में भरकर उसका सुख बन्द करके अनाजके ढेरमें दबा दें और १ वर्ष पूरा होने पर निकालें ।
तृतीयो भागः ।
इसके सेवन से रूप, वर्ण, बुद्धि, मेधा, स्मृति, वाक्शक्ति और बलादिको वृद्धि होती तथा समस्त व्याधियां नष्ट हो जाती हैं । (३३४१) धात्रीरसक्रिया (१)
( यो. र. । नेत्र. ) धात्रीरसाञ्जनक्षौद्रसर्पिभिस्तु रसक्रिया । पित्तानिलाक्षिरोगघ्नी तैमिर्यपटलापहा ॥
आमले के स्वरसमें रसौत, शहद, और घी मिलाकर उसे गाढ़ा करके आंखमें डालने से आंखों के पित्तज वातज रोग तथा तिमिर और पटल नष्ट होते हैं 1
१ द्राक्षामिति पाठान्तरम्
(३३४२) धात्रोरसक्रिया (२)
(वं. से. । नेत्र. ) धात्रीसैन्धवकृष्णाभिस्तुल्याभिर्मरिचं समम् । क्षौद्रयुक्तं निहन्त्याशु पटलञ्च रसक्रिया ।।
आमला, सेंधा और पीपल समान भाग तथा काली मिर्च सबके बराबर लेकर सबको अधकुटा करके आठ गुने पानी में पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो उसे छानकर फिर पकावें । जब अवलेह के समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें शहद मिलाकर रक्खें ।
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इसे आंख में डालनेसे पटल रोग नष्ट होता है । (३३४३) धात्र्यादिगण्डूषः
(बृ. नि. र. | मसूरि.) धात्रीफलं समधुकं कथितं मधुसंयुतम् । मुखे कण्ठे व्रणे जाते गण्डूषार्थ प्रयोजयेत् ॥
यदि मसूरिकामें मुख और कण्ठमें घाव हो गये हों तो आमले और मुलैठीके काथमें शहद मिलाकर उससे कुल्ले कराने चाहियें । (३३४४.) धात्र्यादिप्रयोगः
(बृ. यो. त. । त. ८३; भा. प्र. । ख. २ छर्दि . ) पिष्ट्वा धात्रीफलं लाजाञ्छर्कराश्च पलोन्मि ताम् । दत्त्वा मधुपलञ्चापि कुडवं सलिलस्य च ॥ वाससा गालितं पीतं हन्ति छर्दि त्रिदोषजम् ॥
आमला, धानकी खील और खांड सम भाग मिश्रित ५ तोले लेकर सबको पानीके साथ पीसकर २० तोले पानी में मिलावें और उसमें ५ तोले शहद डालकर कपड़े से छानलें। इस पानीको पीने से त्रिदोषज छर्दि नष्ट हो जाती है (३३४५) धान्याम्लसेक: ( वै. म. र. । पट. ७ ) नाभेरधस्ताद्धान्याम्लसेको जयति निश्चितम् । मूत्रकृच्छ्रं शरीरेषु सेकस्तेनाङ्गदाहहा ।।
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नाभीके नीचे काञ्जीकी धार छोड़नेसे मूत्रकृच्छ्र निस्सन्देह नष्ट होता है । यदि शरीर पर काञ्जीका अवसेचन किया जाय तो अङ्गदाह शान्त है ।
इति धकारादिमिश्रप्रकरणम् ।
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