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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मिश्रप्रकरणम् ] आमलेके ४ सेर चूर्णको आमले ही के रसकी अनेक भावनांए देकर उसमें ४-४ सेर शहद और घी तथा ४० तोले पीपलका चूर्ण और १ सेर खांड मिलाकर चिकने बरतन में भरकर उसका सुख बन्द करके अनाजके ढेरमें दबा दें और १ वर्ष पूरा होने पर निकालें । तृतीयो भागः । इसके सेवन से रूप, वर्ण, बुद्धि, मेधा, स्मृति, वाक्शक्ति और बलादिको वृद्धि होती तथा समस्त व्याधियां नष्ट हो जाती हैं । (३३४१) धात्रीरसक्रिया (१) ( यो. र. । नेत्र. ) धात्रीरसाञ्जनक्षौद्रसर्पिभिस्तु रसक्रिया । पित्तानिलाक्षिरोगघ्नी तैमिर्यपटलापहा ॥ आमले के स्वरसमें रसौत, शहद, और घी मिलाकर उसे गाढ़ा करके आंखमें डालने से आंखों के पित्तज वातज रोग तथा तिमिर और पटल नष्ट होते हैं 1 १ द्राक्षामिति पाठान्तरम् (३३४२) धात्रोरसक्रिया (२) (वं. से. । नेत्र. ) धात्रीसैन्धवकृष्णाभिस्तुल्याभिर्मरिचं समम् । क्षौद्रयुक्तं निहन्त्याशु पटलञ्च रसक्रिया ।। आमला, सेंधा और पीपल समान भाग तथा काली मिर्च सबके बराबर लेकर सबको अधकुटा करके आठ गुने पानी में पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो उसे छानकर फिर पकावें । जब अवलेह के समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें शहद मिलाकर रक्खें । [ १५१] इसे आंख में डालनेसे पटल रोग नष्ट होता है । (३३४३) धात्र्यादिगण्डूषः (बृ. नि. र. | मसूरि.) धात्रीफलं समधुकं कथितं मधुसंयुतम् । मुखे कण्ठे व्रणे जाते गण्डूषार्थ प्रयोजयेत् ॥ यदि मसूरिकामें मुख और कण्ठमें घाव हो गये हों तो आमले और मुलैठीके काथमें शहद मिलाकर उससे कुल्ले कराने चाहियें । (३३४४.) धात्र्यादिप्रयोगः (बृ. यो. त. । त. ८३; भा. प्र. । ख. २ छर्दि . ) पिष्ट्वा धात्रीफलं लाजाञ्छर्कराश्च पलोन्मि ताम् । दत्त्वा मधुपलञ्चापि कुडवं सलिलस्य च ॥ वाससा गालितं पीतं हन्ति छर्दि त्रिदोषजम् ॥ आमला, धानकी खील और खांड सम भाग मिश्रित ५ तोले लेकर सबको पानीके साथ पीसकर २० तोले पानी में मिलावें और उसमें ५ तोले शहद डालकर कपड़े से छानलें। इस पानीको पीने से त्रिदोषज छर्दि नष्ट हो जाती है (३३४५) धान्याम्लसेक: ( वै. म. र. । पट. ७ ) नाभेरधस्ताद्धान्याम्लसेको जयति निश्चितम् । मूत्रकृच्छ्रं शरीरेषु सेकस्तेनाङ्गदाहहा ।। 1 नाभीके नीचे काञ्जीकी धार छोड़नेसे मूत्रकृच्छ्र निस्सन्देह नष्ट होता है । यदि शरीर पर काञ्जीका अवसेचन किया जाय तो अङ्गदाह शान्त है । इति धकारादिमिश्रप्रकरणम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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