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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१५२] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। (नकारादि - अथ नकारादिकषायप्रकरणम् (३३४६) नलदादिकाथ: (३३४९) नवकार्षिककाथ: (ग. नि. । ज्वर.) । (र. र.; . मा.; च. द.; वं. से.; यो. र.; भा. प्र.; ग. पित्तोद्भवे नलदपर्पटकाम्बुशुण्ठी नि. । वातरक्ता.; यो. त. । त. ४१) ___ श्रीखण्डनिःकथितमेतदुशन्ति वैद्याः ॥ त्रिफलानिम्बमञ्जिष्ठावचाकटुकरोहिणी। खस, पित्तपापड़ा, सुगन्ध बाला, सांठ, और । वत्सादनीदारुनिशाकषायो नवकार्षिकः ।। सफेद चन्दनका काथ पित्तज्वरको नष्ट करता है। वातरक्तं तथा कुष्ठं पामान रक्तमण्डलम् । (३३४७) नलमूलादिकषायः कुष्ठं कपालिकाकुठं पानादेवापकर्षति ।। (ग. नि.; रा. मा. । ज्वरा.) | हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमकी छाल, मजीठ, नलवेतसयोर्मुलं मूर्वा च सुरदारु च । बच, कुटकी, गिलोय, और दारु हल्दी । हरेक कषायं विधिवत्कृत्वा पेयं सर्वज्वरापहम् ॥ १-१ कर्ष (१। तोला ) लेकर अधकुटा करके ___नल और बेतकी जड़, मूर्वा और देवदारु सबको ८ गुने पानी में पकावे जब चौथा भाग का काथ समस्त ज्वरोंको नष्ट करता है। पानी शेष रह जाय तो छानकर रोगीको पिलावें । (३३४८) नलादिकाथः यह "नवकार्षिक कषाय " वातरक्त, कुष्ठ, (यो. र.; वंसे. । मूत्रा.; वृ. यो.त. । त. १०१) पामा, रक्तमण्डल और कपाल कुष्ठको नष्ट करता है । नलकुशकाशेक्षुशिफाकथितं नोट-योगरत्नाकर, वृन्दमाधवादि में अन्यत्र प्रातः सुशीतलं ससितम् । इसी काथमें गिलोय के स्थान में पटोलका योग है। पिवतः प्रयाति नियतं (३३५०) नवाङ्गकषायः मूत्राघातः सवेदनः पुंसः ॥ _(भै. र.; च. द. । ज्वर.) नल, कुश, कांस और ईखकी जड़के काथको विश्वामृताब्दभूनिम्बैः पञ्चमूलीसमन्वितैः । ठण्डा करके उसमें मिश्री मिलाकर प्रातः काल | कृतः कषायो हन्त्याशु वातपित्तोद्भवं ज्वरम् ।। पिलानेसे वेदनायुक्त मूत्राघात अवश्य नष्ट हो । सेठ, गिलोय, नागरमोथा, चिरायता, शालजाता है। पर्णी, पृश्निपर्णा, केटली, कटेला और गोखरु । इनका (मिश्री काथका आठवां भाग मिलानी चाहिये ।) काथ वातपित्तज ज्वरको नष्ट करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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