SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् तृतीयो भागः। [१५३] (३३५१) नागरकायः सेठ, पीपल, बेलगिरी, बायबिडंग, दन्तीमूल, (वृ. नि. र. । हृद्रोगा. ।) | कचूर, हर्र और निसोत । सब चीजें समान भाग नागरस्य पिबेदुष्णं कषायं चाग्निवर्द्धनम् ।। लेकर पीसकर कल्क बना और उसे सबके बराबर कासश्वासानिलहरं शूलहृद्रोगनाशनम् ॥ गुड़में मिलावें। सांठका उष्ण काथ पीनेसे अग्निकी वृद्धि होती इसके सेवनसे अर्श नष्ट होती है। और खांसी, श्वास, वायु, शूल तथा हृद्रोगका नाश (मात्रा ६ माशे। अनुपान उष्ण जल।) होता है। (३३५५) नागरादिक्काथ: (१) (३३५२) नागरससकः (यो. स. । समु. ४) ( भा. प्र. । ख. २ बालरो.; यो. र.; वं. से.; वृं. नागरमलयजपर्पटघनसलिलोशीरवासककथितम्। मा. । वालरो.; वृ. यो. त. । त. १४४ ) य पिबति शीतलीकृतमस्य न पित्तज्वात्तिस्यात् ।। नागरातिविषामुस्ताबालकेन्द्रयवैः शृतम् । सांठ, सफेद चन्दन, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, | कुमारं पाययेत्प्रातः सर्वातीसारनाशनम् ।। सुगन्धबाला, खस और बासा । इनके काथको सोंठ, अतीस, नागरमोथा, सुगन्धबाला और ठण्डा करके सेवन करनेसे पित्तज्वर नष्ट होता है। इन्द्रजौ का काथ प्रातःकाल पिलाने से बालकोंका (३३५३) नागरादिकल्कः (१) हर प्रकारका अतिसार नष्ट हो जाता है । (वं. से.; . मो.; यो. र.; च. द.; ग. नि.। । (३३५६) नागरादिकाथः (२) __ शूला.; वृ. यो. त. । त. ९५ ) (वा. भ. । चि. अ. १) नागरतिलगुडकल्कं पयसा संसाध्य यः | नागरं पौष्करं मूलं गुडूची कण्टकारिका । पुमानधात् । सकासश्वासपात्तिौ वातश्लेष्मोत्तरे ज्वरे ॥ उग्रं परिणामशूलं तस्यापैति सप्तरात्रेण ॥ सोंठ, पोखरमूल, गिलोय और कटेलीका काथ सांठ, तिल और गुड़के कल्क को दूधके साथ खांसी, श्वास और पार्श्वशूल युक्त वातकफज ज्वरपकाकर सेवन करनेसे सात दिनमें भयङ्कर परिणाम को नष्ट करता है। शूल नष्ट हो जाता है। (३३५७) नागरादिकाथः (३) (३३५४) नागरादिकल्कः (२) (वं. से.; वृं. मा. । अतिसा. ) - (हा. सं. । स्था ३ अ. ११) नागरातिषामुस्तैरथवा धान्यनागरैः । नागरपिप्पलिबिल्वविडङ्गं तृष्णाशूलातिसारघ्नं रोचनं दीपनं लघुः॥ दन्ती च सत्यभया त्रिता च । सोंठ, अतीस और मोथेका अथवा धनिये कल्कमिदं सगुडं प्रतिपाने और सोंठका काथ रोचक, दीपन, लघु और तृष्णा, चार्शसां नाशनकारि नराणाम् ॥ । शूल तथा अतिसार नाशक है । १ त्रिरात्रेणेति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy