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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१५४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [नकारादि (३३५८) नागरादिकाथः (४) । मुनितरुवल्ककायस्तद्वत् (ग. नि. । अश्मर्य.) पटुरामठपतीवापः ॥ नागरवरुणकगोक्षुरपाषाणभेद सोंठ और सहजनेकी छालके या श्योनाक कपोतवङ्कजः काथः। (अरल) की छालके काथमें हींग और सेंधानमक गुडयावशूकमिश्रः पीतो मिलाकर निरन्तर तीन दिन तक पिलाने से शूल हन्त्यश्मरीमुग्राम् ॥ नष्ट हो जाता है। सोंठ, बरनेकी छाल, गोखरु, पखान भेद (३३६२) नागरादिकाथ: (८) (पाषाण भेद ) और ब्राह्मी के क्वाथमें जवाखार (वृ. नि. र.; वं. से. । ज्वर.) तथा गुड़ मिलाकर पीनेसे दुस्साध्य पथरी भी नष्ट नागरेन्द्रयवं मुस्तं चन्दनं कटुरोहिणी । हो जाती है। पिप्पलीचूर्णसंयुक्तं कषायं तु पिबेन्नरः॥ (गुड़ १। तोला, और जवाखार ३ माषा भ्रममूर्छारुचिछर्दिपित्तश्लेष्मज्वरापहम् ।। मिलाना चाहिये ।) सोंठ, इन्द्रजौ, नागरमोथा, लाल चन्दन और (३३५९) नागरादिकाथ: (५) कुटफीके काथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पिलानेसे (वं. से. । अति.) भ्रम, मूर्छा, अरुचि, छर्दि, और पित्तकफज ज्वर नागरामृतभूनिम्बबिल्वामलकवत्सकैः ।। नष्ट होता है। समुस्तातिविषोशीरैर्वरातिसारहज्जलम् ॥ (३३६३) नागरादिकाथः (९) सोंठ, गिलोय, चिरायता, बेलगिरी, आमला, (वृ. यो. त. । त. १२६; यो. र. । मसू.) इन्द्रजौ, नागरमोथा, अतीस और खसका काथ नागरमुस्तगुडूचीधान्यकभार्गीद्वषैः कृतः काथः। ज्वरातिसारको नष्ट करता है। वातश्लेष्मममूरीदुरी कुरुतेऽनुपानतः सत्यम् ॥ (३३६०) नागरादिकाथ: (६) सोंठ, नागरमोथा, गिलोय, धनिया, भरंगी (वं. से. । अति.) और बासेका काथ वातकफज मसूरिका ( माता ) नागरातिविषामुस्तागुडूचीविश्ववत्सकैः ।। को शान्त करता है। कषायः पाचनः शोथज्वरातीसारवारणः॥ सोंठ, अतीस, नागरमोथा, गिलोय, बोल गोंद | (३३६४) नागरादिकाथः (१०) और इन्द्रजौका काथ शोथ ज्वर और अतिसार (वै. रह. । ज्वर.; भा. प्र. । ज्वर.) नाशक तथा पाचक है। | नागरोशीरबिल्वाब्दधान्यमोचरसाम्बुभिः । (३३६१) नागरादिकाथ: (७) कृतः काथो भवेद् ग्राही पित्तश्लेष्मज्वरापहः।। (वै. म. र. । पटल ९) सोंठ, खस, बेलगिरी, नागरमोथा, धनिया, नागरशोभाञ्जनयोः काथः मोचरस और सुगन्धवाला । इनका काथ ग्राही शूलं विनाशयेत्रिदिनात् । और पित्तकफज्वर नाशक है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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