Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१०७]
-
(३१९८) दशसारसूतरसः । मण्डूरं द्विगुणं चूर्ण शुद्धमञ्जनसन्निभम् ।
(र. र. स. । उ. खं. अ. २०) मूत्रे चाष्टगुणे पक्त्त्वा तस्मिंस्तत्मक्षिपेभरः ॥ पालिकं व्योषस्तानिगन्धकं सफलत्रयम् । उदुम्बरसमान्कृत्वा वटकांस्तान्ययानि च । काकोदुम्बरिकाक्षीरैमर्दित गुटिकीकृतम् ॥ उपयुञ्जीत तक्रेण जीणे सात्म्यं च भोजनम् ।। माषप्रमाणं सक्षौद्रं कुष्ठाशःश्वासकासजित ॥ मण्डूरवटका घेते प्राणदा पाण्डुरोगिणः। ___ सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, हरे, बहेडा और कुष्ठानि प्रवरं शोथमूरुस्तम्भ कफामयान् ॥ आमलेका चूर्ण तथा शुद्ध पारा और गन्धक ५-५ अशोसि कामलां मेहं प्लीहानं शमयन्ति च ॥ तोले लेकर प्रथम पारे और गन्धककी कजली दारुहल्दीकी छाल, सोनामक्खी भस्म, बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण | पीपला मूल और देवदारुका चूर्ण २-२ पल मिलाकर सबको एक दिन काकोदुम्बर (कठूमर) (१०-१० तोले ) तथा शुद्ध अञ्जनके समान के दूधमें घोटकर १-१ माशेकी गोलियां बनावें। | काला मण्डूरका चूर्ण सब से दो गुना लेकर प्रथम
इन्हें शहदके साथ सेवन करनेसे कुष्ठ, अर्श, मण्डूरको उससे आठ गुने गोमूत्रमें पकावें; जब श्वास और खांसी नष्ट हो जाती है ।
गाढ़ा हो जाय तो उसमें उपरोक्त चीज़ोंका चूर्ण
मिलाकर गूलरके फलके समान मोदक बना लें। (३१९९) दारुभस्म
___इन्हें यथोचित मात्रानुसार तक्रके साथ सेवन (र. सा. सं. । प्ली.; रसें. चि. । अ. ९)
करनेसे कुष्ठ, शोथ, ऊरुस्तम्भ, कफरोग, बवासीर, दास्सैन्धवगन्धश्च भस्मीकृत्य प्रयत्नतः।
कामला, प्रमेह ओर तिल्लीका नाश हो जाता है। प्लीहानमग्रमांसं च याकृतं च विनाशयेत् ॥
| यह वटक पाण्डुरोगी के लिए अत्यन्त ही ___ देवदारु, सेंधा नमक, और शुद्ध आमलासार
| उपयोगी हैं। गन्धक समान भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर औषधके पच जाने पर सात्म्य ( अनुकूल) सम्पुट में बन्द करके पुट में फूंकें ।
भोजन करना चाहिए। इसे यथोचित अनुपानके साथ सेवन करनेसे । (३२०१) दाादिलोहम्। तिल्ली, अग्रमांस और यकृत् विकार नष्ट होते हैं।
(वृ. नि. र.; र. र.; र. रा. सुं.; च. सं.; च. द.; ( मात्रा–२-३ माशा)
वृं. मा.; र. सा. सं; यो. र. । कामला; (३२००) दाया दिमण्डूरवटक:
___ ग. नि. । पाण्डु.) (वृ. नि. र. । पाण्डु) दावीसत्रिफलाव्योषविडङ्गान्ययसो रजः। दावर्तीत्वङ्माक्षिको धातु ग्रन्थिको देवदारु च । मधुसर्पिर्युतं लियात्कामलापाण्डुरोगवान् ॥ एषां द्विपलिकान्भागान्कृत्वा चूर्ण पृथक् पृथक्।। दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च,
For Private And Personal Use Only