Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तैलपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[७७]
(३१०१) दाडिमा तैलम् (३) पका हुवा तैल लगानेसे उपदंश ( आतशक ) नष्ट (रा. मा. । कर्ण.)
हो जाता है । संसाधितं दाडिमवल्कलैर्यत्
(दारुहल्दीका .रस या काथ ८ सेर, तैल क्षुद्राफलारुष्करचूर्णयुक्तैः। २ सेर।) अभ्यञ्जनात्सर्षपसम्भवं तत्
कल्क-स्वरसके साथ पकाना हो तो सन तैलं नृणां लिङ्गविवर्धनं स्यात् ॥ समान भाग मिला कर १० तोले, और काथके काय-अनारकी छाल २ सेर, पानी १६ सेर । |
साथ पकाना हो तो १३ तोले ४ माशे लें।) शेष काथ ४ सेर ।
(३१०४) दााद्यं सूर्यपाकतैलम् कल्क-कटेलीके फल और शुद्ध भिलावा । हरेक ३ तोले ४ माशे । काथ और कल्कको १
(ग. नि. । तैला.) सेर सरसोंके तेलमें मिलाकर पकावें ।
दावर्षीगण्डीरसंयुक्तैः कासमर्दकसम्भवैः । इसकी मालिशसे लिङ्गवृद्धि होती है।
मूलैर्महोटिकायास्तु स्वरसेन समन्वितैः ॥ (३१०२) दार्वादितैलम्
स्नुहीक्षीरनिशामूर्वागृहधूमफणिज्जकैः। (वै. म. र. । पट. ११)
रालाबिडगमगधागौरसर्षपनागरैः ।। तैलं दारुरुजासर्जयष्टीपाठावचूर्णितम् ।
| चक्रमर्दकनाडीकाबाकुचीनक्तमालकैः। शीतपित्तेऽमृताराजीकल्कं चाभ्यङ्गलेपनम् ॥
मूलकस्य तु बीजैस्तु सुरसारग्वधच्छदैः ॥ (सरसोंके) तेलमें देवदारु, कूठ, राल, मुलैठी, सक्षारलवणोपेतैर्गोमूत्रैः परिपेषितैः। और पाठाका चूर्ण मिला कर या इनके कल्क तथा | कटुतेलस्थितैः पकैः सम्यग्रविगभस्तिभिः॥ काथ से तेल पकाकर उसकी मालिश करने से अथवा | कृतमाशुनराणान्तु हन्यादेभिः प्रलेपनम् । गिलोय, और लाल सरसों ( या बाबची ) को | दर्दू विचर्चिकां कण्डूं पामां दुर्भक्तकं तथा ।। पानीके साथ खूब महीन पीसकर लेप करने और दारुहल्दी ओर मजीठका काथ तथा कसौंदी शरीरपर मलने से शीतपित्त (पित्ती) रोग नष्ट और बन भट्टेकी जड़का रस १-१ सेर, सरसोंका होता है।
तैल १ सेर और निम्न लिखित चीजोंका कल्क (३१०३) दाादितैलम्
| एकत्र मिलाकर धूपमें रक्खें, और रोज दो चार बार (धन्व.; भै. र.; वं. से. । शूकदो.; ग. नि.। उपदंश.) लकड़ी आदिसे हिला दिया करें। जब सब पानी दावीस्वरसयष्टयाहेहधूमनिशान्वितैः। | जलजाय तो तैलको छान लें। तैलमभ्यञ्जनात्पर्क मेरोग निवारयेत् ॥ कल्क-सेहुंड (सेंड ) का दूध, हल्दी,
दारुहल्दी के स्वरस (अभावमें काथ ) और मूर्वा, घरका धुवां, मरुवा, राल, बायबिडंग, पीपल, मुलैठी, घरका धुंवा तथा हल्दीके कल्क के साथ ' सफेद सरसों, सोंठ, पंवाड़, नाडिका ( नालीका
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