Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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आसवारिष्टकरणम् ]
द्वितीयो भागः ।
अथ गकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् चीज़ोंका महीन चूर्ण और शहद २० तोले उप
रोक्त जलमें मिलाएं। (१४०४) गण्डिकाद्रोणः (ग. नि. । आस. ६) | (१४०५) गण्डीराद्यारिष्टः दद्यात्सलिलद्रोणं कृतमन्थेक्षुगण्डिकाद्रोणम् । (च. सं. । चि. स्था. श्वयथु.) धान्ययवानीदीप्यकपृथ्वीकाश्चेति कुडवांशाः॥ गण्डीरभल्लातकचित्रकश्चि, द्वि पलीनाः स्युर्देयास्तेजवती चव्यचित्रकाजाज्यः। व्योषं विडङ्ग वृहतीद्वयश्च । मधुनः कुडवं दत्वा घृतरूढे भाजने स्थाप्यः।।। द्विपस्थिकं गोमयपावकेन; एष काञ्जिकराजो लवणयुतः कत्तृणाकसुगन्धः। द्रोणे पचेत्काञ्जिकमस्लुनस्तु । दशरात्रात्पातव्यः सलिलश्च पुनः पुनर्देयम् ॥ त्रिभागशेषश्च सुपूतशीतम्। अर्शीभगन्दरगदग्रहणीमेदाप्रमेहदोषांश्च ।। द्रोणेन तत्पाकृतमस्तुनस्तु । नाशयति सेव्यमानो वह्निकरो गण्डिकाद्रोणः ॥ सितोपलायाश्च शतेन युक्तं; १ द्रोण कुटेहुवे ईखके टुकड़े और १ द्रोण
लिप्ते घटे चित्रकपिप्पलीनाम् ॥ (१६ सेर) पानीको घृतके चिकने पात्रमें (जिसमें
वैहायसे स्थापितमादशाहात्; बहुत काल तक घृत रक्खा रहा हो उसमें) भरकर प्रयोजयंस्तद्विनिहन्ति शोकान् । उसमें निम्न लिखित ओषधियां मिला कर यथा
भगन्दराशेः क्रिमिकुष्ठमेहान्; विधि मुख बन्द करके १० दिन तक रक्खा ।
वैवर्ण्यकार्यानिलहिकनश्च ॥ रहने दीजिए । तत्पश्चात् छानकर उसमें सेंधा थोहर, भिलावा, चोता, त्रिकुटा ( सोंठ, मिलाकर तथा सुगन्धतृण ( मिर्चिया गन्ध ) और | मिर्च, पीपल) बायबिडंग और दोनों कटेली २-२ अद्रकसे सुगन्धित करके सेवन करना चाहिए। प्रस्थ (२ सेर) लेकर कूटकर १ द्रोण (१६ सेर)
इस काजीमें पुनः पुनः पानी डालते रहना । काजीमें कण्डों की अग्नि पर पकाइये । जब त्रिचचाहिए । अर्थात् जब पानी कम हो जाय तो उसे तुर्थांश (पौना भाग) काजी शेष रहे तो शीतल पूर्ण करके पात्रका भुग्व पूर्ववत् बन्द करके १०
होनेके पश्चात् छानकर उसमें १ द्रोण साधारण दिन तक रक्खा रहने दें और फिर आवश्यक्तानुसार
मस्तु (द्विगुण जलयुक्त तक्र) और १०० पल मिश्री काममें लाएं।
मिलाकर चित्रक और पिप्पलीके चूर्णसे लिप्त मटइसके सेवनसे अर्श, भगन्दर, ग्रहणी, मेदगेग,
केमें भर कर मुख बन्द करके दश दिन पर्यन्त और अमेहका नाश तथा अग्निदीत होती है।
रक्खा रहने दीजिए । तत्पश्चात् छानकर काममें
लाइये। प्रक्षेप द्रव्य ...धनिया, अजवायन, अजमोद |
इसके सेवनसे भगन्दर, अर्शः, क्रिमि, कुष्ट, और कलौंजी २०-२० तोले, तेजवती (मालकंगनी) | प्रमेह, वैवर्ण्य, कृशता. वायु और हिक्का रोग नष्ट चय, चीता और जीरा १०-१० तोले । सब | होता है ।
भा०९
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