Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[२१८] भारत-भैषज्य रत्नाकरः ।
चकारादि दृढं विमदयेत्सूतं तयोरेव रसैदिनम् । कड़ा तिनका (बस की सीख आदि) डालकर देखते मन्दाग्निना पवेत्पश्चाचतुर्याममतन्द्रित ॥ रहिए। यदि सीख बल उठे तो सनझ लीजिए कि निर्मुक्तगन्धकस्तहि जायते सौ रसेश्वर । गन्धक जोर्ण हो चुका है और अगर सीख को अन्ते तुलितमूतेन तुल्यमानो यदा भवेत् ।। गन्धक लग जाए तो समझिए कि अभी गन्धक तदा सिद्धः परिज्ञेयो रसश्चन्द्रोदयो बुधैः । जीर्ण नहीं हुवा। इस प्रकार परीक्षा करने से जब सद्यो जीर्णविपाचनो निजननो
गन्धकके जीर्ण हो जानेका निश्चय हो जाय तो विट्वन्धतृट्वान्तिनुत् । अग्नि देना बन्द कर दीजिए और शीशी के स्वांग मूत्रस्रावमपाकरोति मदन
शीतल हो जाने पर उसको तोड़कर औषध निकाल प्रोद्रोधका रतौ ॥ लीजिए। मूर्छा हन्ति सहिकषु मधुयुतो
___ अब इसमें इसका चौथा भाग शुद्र गन्धक बल्यःप्रभादाढर्यकृत् । मिलाकर कजली बनाइये और उसे १ दिन पीपलशैवं स्वेदहरः प्रमेहमथनश्चन्द्रोदयाख्यो रस ।। के काथ ता द्रोगपुष्पी के रसमें धोटकर बालुका कासे श्वासे फिरंगाख्ये रोगे च परमो हित । यन्त्रमें उपरोक्त विविसे ४ पहर की अनि दीजिए अपि वैधशतैस्त्यक्तामरुचिं च नियच्छति ।। और स्वांग शीतल होने पर शीशीमें से औषध
शुद्ध पारा और गन्धक बराबर बराबर लेकर निकालकर उसमें १ कर्ष (प्रतिपल औषधमें १ कजली बना लीजिये, फिर उसे २ दिन तक द्रोणप्पी कर्ष) शुद्र बछनाग (मीठातेलिया) मिलाकर उप( गोमा ) के रस और पीपलके काथमें घोटिए। रोक्त दोनों की रसमें खूब अच्छी तरह धोटतत्पश्चात् उसे सुखाकर कपरमिट्टी की हुई आतशी | | कर ४ पहर तक उपरोक्त विधिसे बालुकायन्त्र शीशीमें भरकर बालुका यन्त्र में रखकर प्रथम ४ | द्वारा मन्दानि पर पाक कीजिए। पहर तक मन्दाग्नि और फिर ४ पहर तक तोगानि इस क्रियासे गन्धक भली भांति जीर्ग हो दीजिए । इसके पश्चात् शीशीके स्वंग शीतल जाता है। जब इस प्रकार जारण से गन्धकका होजाने पर उसे तोड़कर भीतरसे शीशीके मुंहमें वजन घट कर केवल पारदका वज़न ही शेष रह लगे हुवे रसकी चक्रिकाको निकाल लीजिए जाय तो चन्द्रोदय रसको सिद्ध समझना चाहिए। और उसके ऊपर जो गन्धक लगी हो उसे खुर्च यह "चन्द्रोदय रस' आमको तुरन्त प वाता, कर अलग कर दीजिए । अब इसे फिर द्रोणपुष्पी अभिवृष्टि करता, तथा कज, तृष्णा, वमन और और पीपलके रसमें १ दिन घोटकर उपरोक्त मूत्रातिसाको रोफता और कामदेवको उत्तेजित विधिसे ४ पहर तक बालुका यन्त्रमें पकाइये। करता है।
बालुका यन्त्रको अग्नि पर चढानेके १ पहर इसे शहद के साथ सेवन करानेसे मूर्छा और पश्चात् आधे आधे पहरमें शीशीमें एक लम्बा और हिचको नष्ट होती है। यह बलदायक, पुष्टिकारक
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