Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[ ३२१]
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(२२३०) तिलादिक्काथः (यो. त. । त.७४) । तुलसीपत्र अथवा द्रोणपुष्पी ( गूमा )के काथस्तिलानां विनिधाय पीतः
रसमें मिर्चका चूर्ण मिलाकर पीनेसे विषमज्वर ___ कटुत्रयं ब्राह्मणयष्टिचूर्णम् ।
नष्ट होते हैं। निहन्ति सद्यःकुसुमं सलोभ्रं | (२२३४) तुलसीपत्रस्वरसयोगः (रा.मा.स्त्री.)
स्त्रीणामसृग्दाहमतिप्रवृद्धम् ॥ सुरसादलनिष्यन्दः पुराणगुडमद्यखण्डसंमिश्रः।
यदि स्त्री को मासिक धर्म के समय अधिक पीतःप्रसूति समयादनन्तरं शूलमपहरति ॥ रक्त आता हो तो तिलोंके क्वाथमें, त्रिकुटा, भारंगी तुलसीपत्रके स्वरसमें पुराना गुड़, मद्य और और लोधका चूर्ण मिलाकर पीनेसे वह बन्द हो । खाण्ड मिलाकर स्त्रीको प्रसवके पश्चात् तुरन्त जाता है । यह क्वाथ स्त्रियोंके रक्तप्रदर और दाहको पिलानेसे शूल नष्ट होता है। भी नष्ट करता है।
। (२२३५) तृणपश्चमूलादिकाथ: (२२३ १) तिलादिकाथः ( यो. र. । स्त्री.) ( यो. र.; वै. र.; भा. प्र.; ग. नि.; भै. र.; वृं. सगुडःश्यामतिलानां काथापीतःसुशीलितो नार्या। मा.; धन्वं. । मूत्र. कृ.; यो. त. । त. २८) जनयति कुसुमं सहसागतमपि सुचिरं निरातङ्कम् ॥ कुश काशशरों दर्भ इक्षुश्चेति तृणोद्भवम् ।
काले तिलोंके क्वाथमें गुड़ मिलाकर नित्य | पित्तकृच्छ्रहरं पञ्चमूलं वस्तिविशोधनम् ।। प्रति कई दिन तक पीने से बहुत दिनोंसे बन्द एतत्सिद्धं पयःपीतं मेढूगं हन्ति शोणितम् ॥ ऋतुस्राव भी खुलकर होने लगता है।
कुश, कांस, शर, दाभ और ईखकी जड़ । (२२३२) तिलादिकाथः ( यो. र. । स्त्री.) इन सबके योगका नाम तृणपञ्चमूल है । तिलशेलुकारवीणां काथं पीत्वा नष्टरजामहिला। यह पित्तज मूत्रकृच्छूनाशक तथा वस्तिसगुडं शिशिरं त्रिदिनाजयति कुसुमं न सन्देहः॥ शोधक है।
तिल, लिहसोड़ा, और कलौंजी के काथको | इनके साथ दूध पकाकर पीनेसे मूत्रेन्द्रियसे ठण्डा करके गुड़ मिलाकर नित्य प्रति तीन दिन आनेवाला रक्त बन्द हो जाता है । तक पीनेसे नष्टार्तव (ऋतु बन्द होना) नष्ट होकर | (२२३६) तृणपञ्चमूलादिसिद्धपयः रजोस्राव होने लगता है।
(. मा. । कास.; वं. से. । कास.) (२२३३) तुलसीपत्रस्वरसः
शरादिपञ्चमूलस्य पिप्पलीद्राक्षयोस्तथा। (शा. सं. । खं. २ अ. १) कषायेण शृतं क्षीरं पिबेत्समधुशर्करम् ॥ पीतो मरिचचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः। । तृणपञ्चमूल (कुश, कास, शर, दाभ और द्रोणपुष्पीरसोप्येवं निहन्ति विषमज्वरान् ॥ । ईखकी जड़ ) पीपल और द्राक्षा ( मुनक्का )के
१ सुश्रुतमें शरके स्थानपर नल पाठ है । भा० ४१
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