Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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- भैषज्य रत्नाकरः
[ ३८० ]
क्षवोऽश्मन्तको बिल्वं हरिद्रा हिङ्गुयूथिका । फणिज्झकश्च तैस्तैलमत्रिमूत्रे चतुर्गुणे ॥ सिद्धं स्यान्नावनं चूर्ण चैषां प्रधमनं हितम् ।।
भारत
दालचीनी, दन्तीमूल, व्याघ्रनखी ( नख नामक गन्ध द्रव्य), बायबिड़ङ्ग, मोगरा, अपामार्ग (चिरचिटा ), करञ्जके फल, सिरसके बीज, नक छिकनी, अश्मन्तक (पाषाणभेद - पत्थरचटा ) बेलकी छाल, हल्दी, हींग, जूही और बनतुलसी इनके कल्क और ४ गुने भेड़के मूत्रके साथ तैल पका लीजिए ।
इस तैलकी बूंदें नाक में डालने से अथवा उपरोक्त ओषधियोंके चूर्ण को नाक में चढ़ानेसे शिरो रोग नष्ट होता हैं ।
[ तकारादि
(२४८२) त्वगादितैलम् (बृ. नि. र. । बाल.)
त्वक्पत्ररास्नागुरुशिग्रुकुष्ठै
रम्लपिg: सबलासिता है: । अजीर्णकनं च विषूचिकानं तैलं विपक्कं च तदर्थकारि ॥
(२४८३) तक्रारिष्टः
(ग. नि. । आस.; च. सं. चि. अ. ९ ) हपुषा सुषवी धान्यमजाजी कारवी शठी । पिप्पलीपिप्पलीमूलं चित्रको गजपिप्पली ॥ यवानीचाजमोदा च तच्चर्ण तक्रसंयुतम् । मन्दाम्लकटुकं विद्वान् स्थापयेद्धृतभाजने ॥ व्यक्ताम्लकटुकं जातं तक्रारिप्रं मुखप्रियम् पाययेन्मात्रा कालेष्वन्नस्य तृषितं त्रिषु || दीपनो रोचनो बल्यः कफवातानुलोमनः । गुदश्वयथुकण्ड्वार्त्तिनाशनो बलवर्धनः ।।
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दालचीनी, तेजपात, रास्ना, अगर, सहिजना, कूठ, बला, और सफेद आकको का लीजिए। इस कल्क और चार गुने पानीके साथ तैल पका लीजिए |
अथ तकाराद्यरिष्टप्रकरणम्
यह तैल अजीर्ण और विसूचिकाका नाश करता है ।
इति तकारादितैलप्रकरणम् ।
चूर्णको ८ गुने तक में मिलाकर वृतके चिकने बरतन में भरकर मुख बन्द करके रख दीजिए । ६-७ दिन या न्यूनाधिक समयमें वह तक अम्ल और कटु (चरपरा ) हो जायगा उस समय उसे छानकर बोतलों में भरकर रख दीजिए ।
यह अत्यन्त स्वादु, अग्निदीपन, रोचक, बलकारक, कफवातानुलोमक, तथा गुदाकी सृजन खुजली और पीड़ाशामक है ।
इसे दिन में ३ बार भोजनके समय प्यास लगने पर पिलाना चाहिए ।
( मात्रा - ३ - ४ तोले 1)
हाऊबेर, कालाज़ीरा, धनिया, सफेद जीरा, कलौंजी, कचूर, पीपल, पीपलामूल, चीता, गज
( २४८४) तकारिष्टः (भै. र. च. दु.। संप्र.;) यमान्यामलकं पथ्या मरिचं त्रिपलांशिकम् ।
पीपल, अजवायन और अजमोद के समान भाग | लवणानि पलांशानि पञ्च चैकत्र चूर्णयेत् ॥
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