Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४७८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि इसे यथोचित मात्रा और अनुपानके साथ घी और शहदमें मिलाकर चाटनेसे औदुम्बर कुष्ठ सेवन करनेसे अपस्मार, उन्माद और दुर्जय वात नष्ट होता है। व्याधि नष्ट होती है।
(व्यवहारिक मात्रा २ रत्ती । मूर्वा और वाबची (साधारण मात्रा-४-६ रत्ती । अनुपान- १॥-१॥ माषा) शहद ।) (२७१४) त्रिकत्रयाद्यं लौहम्
(२८१६) त्रिगुणाख्यं ताम्रम् (र.र.गण्डमाला) (र. र.; धन्वं. । शूल.; रसें. चिं. । अ. ९; र. का.धे.) ।
द्विभागगन्धेन रसेन भागं त्रिकत्रयसमायुक्तं तालमूली शतावरी।
दिनं च कुर्याः स्वरसेन घृष्टम् । योगानिहन्ति शूलानि दारुणान्ययसोरजः॥
निक्षिप्य ताम्रस्य पुटे रसेन ___ त्रिकुटा, त्रिफला, त्रिमद (मोथा, बायबिड़ङ्ग,
तुल्यं मृदा तत्र पुटं ददीत ॥ और चीता ) तालमूली (ताल वृक्षकी जड़) और पुटे घृताक्तं मधुना समेतं शतावर एक एक भाग तथा लोहभस्म इन सबके
फलत्रयेण मधुना घृतेन । बराबर लेकर एकत्र खरल करें ।
भगन्दरनो हि रसोऽयमुक्तो __इसके सेवनसे भयङ्कर शूल नष्ट होता है। ददीत पथ्यं मधुरं हितश्च ॥
( मात्रा-४-६ रत्ती । अनुपान-उष्ण जल (स्त्रियं दिवास्वापश्च वर्जयेत् ॥) या काजी)
१ भाग पारद और २ भाग गन्धककी कज्जली (२७१५) त्रिगन्धरसः (र. रा. मुं. । कुष्ट.) करके उसे १ दिन कुरी नामक धान्यके स्वरसमें स्वरसै राजवृक्षस्य तालगन्धमनःशिला।
घोटकर पारेके बराबर वज़नी शुद्ध ताम्रकी कटोरियों गुञ्जावाकुचिकाद्रावैर्भाव्यं कङ्गुणितैलके ।।।
| में बन्द करके ऊपर तीन चार कपरमिट्टी करके
सुखाकर गजपुटमें फूंक दें, और स्वांगशीतल होनेप्रतिद्रावैर्दिनकन्तु भक्षयेदर्द्धनिष्ककम् ।। कुष्ठमौदुम्बरं हन्ति त्रिगन्धोऽयं महारसः ।।
| पर कटोरियों समेत पीसलें । ( यदि कटोरियोंकी मध्वाज्यवाकुचीमूर्वाकर्षैकमनु लेहयेत् ॥
भस्म न हुई हो तो पुनः इसी प्रकार पुट दें।) ___हरतालभस्म, शुद्ध गन्धक और शुद्ध मनसिल
इसे घी और शहद अथवा त्रिफलाका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र खरल करें और फिर ।
और धी तथा शहदके साथ सेवन करनेसे भगन्दर उसे १-१ दिन अमलतासके पत्तों के रस, ।
नष्ट होता है। चौंटलीके रस और बाबचीके रसमें धोटें और पथ्य-मधुररसवाले पदार्थ । अन्तमें १ दिन मालकानीके रसमें घोटकर रक्खें। स्त्रीप्रसंगसे बचना और दिनको न सोना
इसमेंसे प्रतिदिन २ माघे औषध खाकर चाहिए। ऊपरसे बाबची और मूर्वाके ६-६ माषे चूर्णको ( मात्रा--१-२ रत्ती )
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