Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
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शुद्ध गन्धक ६॥ तोले, शुद्ध चांदी १॥ | या क्वाथ तथा त्रिकुटा और त्रिफलाके काथकी तोला और शुद्ध ताम्रपत्र २॥ तोले लेकर सबको २१-२१ भावना ( कुल मिलाकर ८४ भावना ) निरन्तर आठ दिन तक नीबूके रसमें घोटकर देकर उसमें १५-१४ तोले कनेर और धतूरेके अत्यन्त महीन पिट्टी बनाकर उसका गोला बना फूलोंका चूर्ण मिलाकर एक एक दिन आकके दूध लीजिए और उसे ( सुखाकर ) एक कपड़े में तथा बछनाग (मीठा तेलिया) और सफेद चन्दनके बांधकर दोलायन्त्रविधिसे काञ्जी, नीबूका रस काथमें घोटकर महीन चूर्ण करके काचकी शीशी)
और जवाखार में आठ दिन तक स्वेदित कीजिये। भरकर सुरक्षित रखिये । ( नीबूका रस और काजी बराबर बराबर तथा इसमें से प्रतिदिन ३ रत्ती रस पीपलके चूर्णके यवक्षार काञ्जीका ३२ वां भाग लेना चाहिये ) । साथ देनेसे एक मासमें समस्त प्रकारके सन्निपात, ज्यों व्यों काञ्जी और रस सूखता जाय त्यों त्यों
शूल, प्रमेह, उदररोग, समस्त वातव्याधि गुल्म नवीन डालते जाना चाहिये । ( जवाखार बार बार और वातरक्तका नाश हो जाता है । डालनेकी आवश्यकता नहीं है । )
___ इसके सेवनकालमें तैल, क्षार और खटाईसे आठ दिन पश्चात् स्वांगशीतल होनेपर
परहेज़ करना तथा मधुर रसवाला आहार सेवन गोलेको निकालकर खरल करके उसमें २१॥
करना चाहिये। तोले शुद्ध गन्धक और ३॥ तोले शुद्ध स्वर्ण
(२७६७) त्रैलोक्यडम्बररसः माक्षिकका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल कीजिए कि जिससे वह सब परस्पर मिलकर एक
(र. का. धे.; र, चं.; रसें. सा. सं.; र. रा. मुं. । जीव हो जाय । तत्पश्चात् उसे सेहुण्ड ( थोहर
उदर.; रसें. चिं. । अ. ९) सेंड ) और आकके दूध तथा चन्दन मिले हवे द्वौ भागो शिववीजस्य गन्धकस्य चतुष्टयम् । कचनारकी जड़के क्वाथमें ३-३ दिन और चीतेके । अभ्रवह्निविडङ्गानां गुडूचीसत्वनागयोः ॥ काथमें १ दिन (सब मिलाकर १० दिन) घोटकर कृष्णाजीरकटूनाश्च लवणं क्षारसंयुतम् । गोला बनाइये । और उसे शराव सम्पुट में बन्द गुञ्जात्रयं क्रमेणाथ ददीतघृतसंयुतम् ।। करके, उसपर कपरमिट्टी करके सुखाकर चार भोजयेत्स्निग्धमुष्णं च पायसं च विवर्जयेत् ॥ उपलोंकी आगमें फूंक दीजिये । इसी प्रकार उप- शुद्ध पारा २ भाग, शुद्ध गन्धक ४ भाग, रोक्त चीजोंके रसमें घोट घोटकर चार चार उप- । अभ्रकभस्म, चीता, बायबिड़ङ्ग, गिलोयका सत्व, लोकी अग्निमें बार बार फंकिये और औषधको सीसाभस्म, पीपल, जीरा, त्रिकुटा, सेंधा और तोलकर देखते रहिये; जब १४ तोले वज़न शेष यवक्षार १-१ भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धक रह जाय तब पुट देना बन्द कर दीजिए। की कजली बना लीजिये तत्पश्चात् उसमें अन्य
अब उसे संभालुके पत्ते और गिलोय के स्वरस । औपधोंका महीन चूर्ण मिलाकर खरल करके रखिये।
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