Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[५४४]
चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी
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संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण । संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण २१०१ जयमङ्गलोरसः अञ्जन या नस्यसे स- २१३८ ज्वरध्वान्तदिवाकरः नवीनञ्चर (विरेचक)
निपातकोनष्टकरताहै | २१३९ ज्वरनागमयूरचूर्णम् साध्यासाध्य सन्त२१०५ , , भयङ्कर सन्निपात,
तादि ज्वर, कामशो अचेतनता ।
कोद्भवज्वर, दाह, २१०६ जयरसः शीतज्वरको १ ही
शीतज्वर, चातुर्थिक दिनमें खोता है।
विपर्ययः, प्लीहा, २१०७ जयवटिका ज्वर, श्वास, खांसी,
शोथ, तृष्णा,खांसी, पाण्डु (विरेचकहै।)
शरीरकी पीड़ा। २१०९ जयागुटिका विषमज्वर, खांसी, २१४० ज्वरपञ्चाननोरसः ।। सन्निपात
श्वास, क्षय, अरुचि, २१४१ ज्वरपञ्चाननो ,, नव ज्वर, अत्यन्त अतिसार, हृदयशूल
ताप, (४ घडीमें २१२१ जीर्णज्वराङ्कुशः जीर्णज्वर, भय, खांसी
ज्वर उतार देता है) अरुचि
२१५२ ज्वरभैरवचूर्णम् समस्त ज्वर, अनेक २१२२ जीर्णज्वरारिरसः जीर्णज्वर, अजीर्ण ।
देशोंके जलवायुसे २१२३ , ,
उत्पन्न ज्वर, विरु२१२५ जीवनान्दाभ्रम् विषमज्वर, प्लीहा,
दौषधसे उत्पन्नज्वर, यकृत, वमन, खांसी,
प्लीहा,यकृत, अरुचि, अरुचि ।
शोथ, शिरशूल । २१३० ज्वरकालकेतुरसः आठ प्रकारके ज्वर । २१४३ ज्वरभैरव रसः । जीर्णज्वर, खांसी,शूल २१३१ ज्वरकुञ्जरपारोन्द्र दैनिक, तिजारी, २१४४ , , जीर्णज्वर, शूल
चातुर्थिकादिविषमज्वर २१४५ , समस्तज्वर (रेचकहै)
शोथ, खांसी। २१४६ ,, ,, नवीनज्वर, जीर्ण२१३२ ज्वरकृन्तनो रसः सर्वज्वर
ज्वर, विषमज्वरादि २१३३ ज्वरकेसरीरसः पित्तज्वर, दाह,सन्निपात
को १ ही दिनमें २१३४ वरगजसिंहरसः ज्वर
नष्ट करता है। २१३५ ज्वरघ्नी गुटिका सर्व प्रकारके ज्वर २१४७ , , कफपित्तज नवीन २१३६ ज्वरनीवटी विषमज्वर, सन्निपात
तथा विषमज्वर, २१३७ ज्वरधूमकेतु नवीन ज्वर
श्वास।
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