Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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संख्या प्रयोगनाम १३७४ गौर्यायं घृतम्
२०३२ जात्यादि घृतम्
२०३३ जात्यादिघृतम्
२०३७ जीरकघृतम् २४३३ तिक्तादिघृतम्
""
१७९५ चन्दनादितैलम्
१७९६
यमकः
तैलप्रकरणम्
१७९७ "' २०५३ जात्यादि
- २४६९ ताली साद्यं
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चिकित्सा - पथ-प्रदर्शिनी
मुख्य गुण
गहरे, पुराने, गले
सड़े तथा पीड़ा, दाह
और स्राववाले घावों भरता है। सूक्ष्म मुखवाले, गहरे,
और पीडायुक्त मर्माश्रित व्रण भरते
और सूख जाते हैं । पीड़ा और रक्तस्राव अग्नि
वाला नासूर,
दग्ध व्रण ।
अग्निदग्ध व्रण घाववाले स्थानके
रंगको सुधारता है।
संख्या प्रयोगनाम
सिम, पामा, विचचिका ।
अत्यन्त कठिन व्रणको
भी पकाकर फोड़ देता है |
१८४१ चिरविल्वादिलेपः व्रणको शीघ्र पकाकर फोड़ देता है | araणको भरता है २०६६ जम्ब्वाम्रपल्ल्वादि व्रणवाले स्थानका रंग ठीक करता अग्निदग्ध व्रणको है तुरन्त भरता २०७० जातीपुष्पादिलेप: बढ़े हुवे मांसको है 1 रोपणतैलम् व्रणरोपण है । कता है।
1
" विषजव्रण, कटिदंश, २०७८ जैपाललेपः
शस्त्रत्रण, अग्निदग्ध, दन्तनखादिका घाव, कील इत्यादि से बिंध
२४९७ तालादिलेपनम्
जाना आदि समस्त प्रकारके घाव ।
तुरन्तका घाव (क्षत)
१४१० गदादिलेपः
१४१३ गन्धकादिलेप:
१४३४ गुडगृहधूमलेपः
१४३७ गुणवतीवर्तिः
१४३९ गृहधूमादिलेपः
१४४०
२५०२
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लेपप्रकरणम्
"
१४४७ गोदन्तलेपः
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लेपः
[ ५६७ ]
मुख्य गुण
गाता है
अर्बुद ( रसौली )
अत्यन्त पीड़ा और
सूजनवाले, पुराने
कफवातज व्रण
और
लिए उत्तम मल्हम
सर्व प्रकार
बढ़े हुवे मांसको काटता है।
पीपवाले और कृमि
युक्त हर प्रकारके
व्रण, उपदंश । व्रणकी सूजन,
दाह, पीड़ा और
रक्तस्रुति ।