Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 579
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संख्या प्रयोगनाम १३७४ गौर्यायं घृतम् २०३२ जात्यादि घृतम् २०३३ जात्यादिघृतम् २०३७ जीरकघृतम् २४३३ तिक्तादिघृतम् "" १७९५ चन्दनादितैलम् १७९६ यमकः तैलप्रकरणम् १७९७ "' २०५३ जात्यादि - २४६९ ताली साद्यं www.kobatirth.org 99 चिकित्सा - पथ-प्रदर्शिनी मुख्य गुण गहरे, पुराने, गले सड़े तथा पीड़ा, दाह और स्राववाले घावों भरता है। सूक्ष्म मुखवाले, गहरे, और पीडायुक्त मर्माश्रित व्रण भरते और सूख जाते हैं । पीड़ा और रक्तस्राव अग्नि वाला नासूर, दग्ध व्रण । अग्निदग्ध व्रण घाववाले स्थानके रंगको सुधारता है। संख्या प्रयोगनाम सिम, पामा, विचचिका । अत्यन्त कठिन व्रणको भी पकाकर फोड़ देता है | १८४१ चिरविल्वादिलेपः व्रणको शीघ्र पकाकर फोड़ देता है | araणको भरता है २०६६ जम्ब्वाम्रपल्ल्वादि व्रणवाले स्थानका रंग ठीक करता अग्निदग्ध व्रणको है तुरन्त भरता २०७० जातीपुष्पादिलेप: बढ़े हुवे मांसको है 1 रोपणतैलम् व्रणरोपण है । कता है। 1 " विषजव्रण, कटिदंश, २०७८ जैपाललेपः शस्त्रत्रण, अग्निदग्ध, दन्तनखादिका घाव, कील इत्यादि से बिंध २४९७ तालादिलेपनम् जाना आदि समस्त प्रकारके घाव । तुरन्तका घाव (क्षत) १४१० गदादिलेपः १४१३ गन्धकादिलेप: १४३४ गुडगृहधूमलेपः १४३७ गुणवतीवर्तिः १४३९ गृहधूमादिलेपः १४४० २५०२ For Private And Personal लेपप्रकरणम् " १४४७ गोदन्तलेपः " "" Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लेपः [ ५६७ ] मुख्य गुण गाता है अर्बुद ( रसौली ) अत्यन्त पीड़ा और सूजनवाले, पुराने कफवातज व्रण और लिए उत्तम मल्हम सर्व प्रकार बढ़े हुवे मांसको काटता है। पीपवाले और कृमि युक्त हर प्रकारके व्रण, उपदंश । व्रणकी सूजन, दाह, पीड़ा और रक्तस्रुति ।

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