Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 554
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [५४२] चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी - - - संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण १३६७ गुडूच्यादिधृतम् पुरानाञ्चर, प्लीहा, धूपप्रकरणम् अग्निमांद्य, खांसी, | १४५५ गुग्गुल्वादिधूपः सर्वज्वर शूल, ग्रहणी १८४३ चातुर्थिकञ्चरेधूपः चातुर्थिकञ्चर १३७० गोपीड्यादिघृतम् विषमज्वर, शिरपीड़ा, पार्श्वपीड़ा, अरुचि, अञ्जनप्रकरणम् छर्दि, १४५९ गरुडाञ्जनम् शीतज्वर १७६३ चन्दनादि , चातुर्थिक, विषमज्वर २०९४ ज्वरनाशकाञ्जनम् जिस नेत्रमें आंजा तिजारी,स्वास,कास। जाय उसके दूसरी २४३७ तिल्वकाद्यं , जीर्णज्वर, शोथ,पाण्डु ओर के आधे अङ्गका ज्वर उतर जाता है। तैलमकरणम् २०९५ " १७८९ चन्दनबलालाक्षादि० सर्वज्वर, दाह, शि- २०९६ द्वयाहिकज्वर रपीड़ा,खाज,खांसी, २१०४ जयमङ्गलोरसः ज्वर (नस्य ) ( शरीरको पुष्ट क २५४३ तुरङ्गलालाद्यञ्जनम् तन्द्रा रता है) नस्यप्रकरणम् १७९३ चन्दनादितैलम् समस्तज्वर (बस्तिके | २१०० ज्योतिष्मतीतैलनस्यम् तन्द्रा योग्य ) । २१०१ ज्वरनाशकनस्य जिस नासापुटमें १८०१ चन्दनायं तैलम् ज्वर और दाहको नस्य दी जाय उस तुरन्त शान्त करता है। ओरका ज्वर उतर २०५१ जात्यादितैलम् सन्निपातज्वर जाता है। २४६६ तप्तराज , घोरसन्निपात, शिर | २१०४ जयमङ्गलोरसः ज्वर ( नस्य ) शूल भयङ्करदाह, स्वेद । रसप्रकरणम् १४९५ गगनायो रसः सन्निपातज्वर आसवारिष्टप्रकरणम् '१५०५ गदमुरारिरसः सन्निपात, ज्वर (तीव्र २४८६ त्रायमाणासवः ज्वर, सन्निपात, खा. रचक) सी, पाण्डु १५०६ , , आमज्वर For Private And Personal

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