Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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स्थौणेयकं ध्यामकपद्मकानि ' पुन्नागतालीससुवर्चिकाच ॥
कुटन्नटैलासितसिन्धुवाराः शैलेयकुष्ठे तगरं भयङ्गु | रोधं जलं काञ्चनगैरिकञ्च
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भारत - भैषज्य - र
[ तकारादि
पुटमें फूंक लें; और सम्पुटके स्वांगशीतल होनेपर उसमें से भरमको निकालकर महीन पीस लें ।
समं गन्धं चन्दनसैन्धवञ्च ॥ सूक्ष्माणि चूर्णानि समानि कृत्वा शनिदध्यान्मधुसंयुतानि । evisiदस्ता इति प्रदिष्ठो
विषं निहन्यादपि तक्षकस्य ॥ पुण्डरिया, देवदारु, मोथा, कृष्णसारिवा, कुटकी, थुनेर, गन्धतृण ( मिर्वियागन्ध ), कमलपुष्प, नागकेसर, तालोसपत्र, सज्जी, केवटी मोथा, इलायची, सफेद संभालु, शैलेय ( भूरि छरीला ), कूठ, तगर, फूल प्रियंगु, लोध, नेत्रबाल, सोनागेरु, गन्धक चन्दन और सेंधानमक समान भाग लेकर महीन चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर गाय के सींग में भरकर रख दीजिए ।
यह ताद सर्पविषको नष्ट करता है । (२८०१) तालकाचा मधी
( ग. नि. । नाडीत्र.; रा. मा. | नाडी. ) दहेत्पुटे तालकन्दुल
तुल्यांक तत्र भवेन्मषी या । तत्पूरिता रोहति दुष्टनाडी
दुष्टव्रणो वा चिरकालजातः || हरताल और चौलाईका पञ्चाङ्ग बराबर बराबर लेकर दोनों को एकत्र पीसकर सम्पुट में बन्द करके
२
१ ध्यामकगुग्गुलुनीति पाठान्तरम् । थोड़ी देरतक मुख चलाते रहे फिर कुला ४ सक्षौद्रविति पाठान्तरम् ।
- रत्नाकरः ।
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इसे भाव या नासूर के भीतर भरने से दुस्साध्य धाव भी भर जाता है । (२८०२) तिलकाथधारा (वृ.यो. त. त. ९४ ) अहमतिलधारा निष्पतन्ती विदुरादपनयति हि शूलं शूलिनः शूलदेशे ।
शूल के स्थानपर तिलोंके उष्ण काथकी धार देने से शूल नष्ट हो जाता है । (२८०३) तिलस्नानम् (यो. र.; वं. से. (नेत्र. ) स्नानं कृष्णतिलैश्चापि चाक्षुष्यमनिलापहम् ।
तिलोंको पीसकर शरीरपर मलकर स्नान करना वायुनाशक और नेत्रोंके लिए हितकारी है। (२८०४) तिलादिकवलः (वं. से. । मु. रो. ) तिलभवबीजपावकसित तर सिद्धार्थकल्पितःकवलः ।
उष्णाम्बुसम्प्रयुक्तो द्विजतलसञ्जातशोथहरः ।।
तिल, चीता, और सफेद सरसों समान भाग लेकर चूर्ण करके गर्म पानी में मिलाकर उसके कदले धारण करनेसे मसूढों की सूजन नष्ट होती है । (२८०५) तिलादिगण्डूषः
( यो. र. ग. नि. । मुख.; भा. प्र. म. ख. मुख. ) तिला नीलोत्पलं सर्पिः शर्करा क्षीरमेव च । सोधी दग्धवक्त्रस्य गण्डूषो दाहनाशनः ॥
तिल, नीलोफर (नील कमल ), घी, खाण्ड, और लोध ४-४ तोले लेकर, ८ गुने दूध में मिलालें लोध्राञ्जनमिति पाठान्तरम् । ३ करदें ।
मुखमे पानी भरकर इसीका नाम कवल धारण करना हैं ।
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