Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ ४८६ ]
पान, अद्रक और नीबूके रसकी ३ - ३ भावना देकर (१ - १ माषेकी) गोलियां बना लीजिये ।
तकारादि
(२७३९) त्रिपुरारिरसः (भै.र.; र.रा. सुं.ज्वर) दरदोत्थन्तु संशुद्धं रसं ताम्रञ्च गन्धकम् । लौहमभ्रं विषं चैव सर्व कुर्यात्समांशकम् ॥ रसार्द्धं मृतरूप्पञ्च शृङ्गवेराम्बु मर्दितम् । द्विगु मधुना देयं सितयाईरसेन वा ।।
(साधारण अनुपान-अद्रकका रस और मधु ।) ज्वरमष्टविधं हन्ति वारिदोषभवं तथा । लहानमुदरं शोथमतीसारं विनाशयेत् ॥ रोगानेतान्निहन्त्याशु शङ्करस्त्रिपुरं यथा ॥
भारत-भैषज्य रत्नाकरः ।
इसके सेवन से सन्निपातज्वर, वातज ज्वर, भयङ्कर कफज्वर, शिरशूल और उदरशूल नष्ट होता है ।
(२७३८) त्रिपुरसुन्दरो रसः
( भै. र. । आमाशय . ) सिन्दूरमभ्रन्त्वथ हेममाक्षिकं
मुक्ताफलं हेम च तुल्यभागिकम् । कन्याम्बुना मर्दय सप्तवासरान्
गुञ्जाप्रमाणां वटिकां विधेहि च ॥ रसोत्तमस्यास्य निषेवणान्नरा--माशयोत्थामयरोगसङ्घतः । गत्वा विमुक्तिं बलवीर्य सयुतो मेधान्वितः सौम्यवपुश्च जायते ॥ अन्नपानादिकं सर्वे सुजरं यच्च पोषण
मामाशयगदे सेव्यं दुर्जरञ्च विवर्जयेत् ॥ रससिन्दूर, अभ्रक भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, मोतीकी भस्म और स्वर्णभस्म समान भाग लेकर
सबको सात दिन तक घृतकुमारी ( ग्वारपाठा) के रसके साथ घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये ।
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आमाशयरोगमें शीघ्र पचने और पोषण करने वाला आहार सेवन करना तथा दुर्जर आहार से परहेज करना चाहिये ।
हिङ्गुलोत्थ शुद्ध पारद, ताम्र भस्म, शुद्ध गन्धक, लौहभस्म, अभ्रक भस्म और शुद्ध बछनाग ( मीठा तेलिया) १-१ भाग तथा चांदीभस्म आधाभाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बना लीजिये फिर उसमें अन्य औषधें मिलाकर सबको १ दिन अदरक के रस में घोटकर २ - २ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये ।
(२७४०) त्रिफलादि गुटिका
(बृ. नि. र. । त्वग्दोष यो. र. कुष्ट ) त्रिफलारुष्करलौ हैः सावल्गुजभृङ्गलाङ्गली व्योषैः। सगुडैर्वराहकन्दैः पलिकैरेकत्र संमिश्रः ॥
इनके सेवनसे समस्त आमाशय रोग नष्ट हो गुटिकां प्रकल्प्य खादेदेकै कामक्षसम्मितां प्रातः । कर बलवीर्य और मेधाकी वृद्धि होती है । कुठे द किलासजित्वा वर्षेण सर्वथा पलितम् ॥ जीवति वर्षशतं वै दीप्त हुताशो युवेव सोत्साह : ।।
हरे, बहेड़ा, आमला, भिलावा. लोहभस्म, बावची, भंगरा, कलिहारी, त्रिकुटा, गुड़ और
इन्हें शहद अथवा अद्रकका रस और मिश्री साथ सेवन करने से आठ प्रकारके ज्वर विशेषतः पानीकी खराबी से होनेवाला ज्वर, तिल्ली, उदर विकार, शोथ और अतिसारका नाश होता है ।
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