Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 497
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] द्वितीयो भागे । [४८५ ] लेकर प्रथम पारे और गन्धककी कज्जली बना शूलों में त्रिकुटेके चूर्ण और अरण्डीके तेल (काष्ट्रायल)के लीजिये, तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियोंका महीन साथ देना चाहिए । चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल करके रखिये। (व्यवहारिक मात्रा-२-३ रत्ती । ) इसे (१॥-२ माषेकी मात्रानुसार ) शहदके (२७३६) त्रिपुरभैरवो रसः (४) साथ सेवन करनेसे वातव्याधि नष्ट होती है। ( भा. प्र. ! ज्वर.) विषमहौषधमागधिकोषण(२७३५) त्रिपुरभैरवो रसः (३) घुमणिरक्तकमाईकमर्दितम् । ( यो. र.; वृ. नि. र.; र. सा. सं.; र. चं.; क्रमविवर्धितमुद्दलति ज्वरं र. रा. सुं. । शूल.; यो. त. । त. ४३) त्रिपुरभैरव एष रसो वरः ।। भागो रसस्य भागश्च हेम्नःपिष्टिं विधाय च । शुद्ध वछनाग (मीठा तेलिया) १ भाग, सोंठ तथा द्वादश भागानि ताम्रपत्राणि लेपयेत् ॥ २ भाग, पीपल ३ भाग, काली मिर्च ४ भाग, ऊर्ध्वाधो गन्धकं दत्त्वा पलमात्रं समन्ततः। ताम्रभस्म ५ भाग और शुद्ध हिङ्गुल (शिंगरफ) सिश्चेन्मत्स्याक्षिनीरेण रुद्धवा यामचतुष्टयम्। ६ भाग लेकर सबको अद्रकके रसमें घोटकर पचेच्छलहरः मृतो भवेतत्रिपुरभैरवः। (४-४ रत्ती) की गोलियां बना लीजिये । माषो मध्वाज्यसंयुक्तो देयोऽस्य परिणामजे॥ इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन कराने अन्येष्वेरण्डतैलेन कटुत्रययुतो हितः ॥ से समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । १ भाग पारद और १ भाग सोनेके वर्क (साधारण अनुपान-मधु ।) लेकर दोनोंको एकत्र घोटकर पिटी बनावें और (२७३७) त्रिपुरभैरवो रसः (५) उसे १२ भाग शुद्ध ताम्रपत्रोंपर लेप करके उन्हें (र. प्र. सु. । अ. ८) ऊपर नीचे ५-५ तोले गन्धकका चूर्ण बिछाकर वेदवेदरसः पृथ्व्यः शुण्ठीमरिचटङ्कणाः । एक शराबमें रक्खें और फिर उन्हें मत्स्याक्षि | चतुर्थो वत्सनाभश्च वाते त्रिपुरभैरवः ॥ ( मछेछी )के रसमें भिगोकर दूसरा शराव ऊपर भावना नागवल्ल्या च तथाकस्य भावना। ढककर सम्पुट बनावें और कपरमिट्टी करके सुखाले। निम्बुकस्यापि दातव्या वारत्रयमनुक्रमात् ॥ इसे ४ पहर तक बालुकायन्त्रमें पकाएं और । सनिपाते तथा वाते श्लेष्मरोगे महाज्वरे। स्वांगशीतल होनेपर निकालकर पीसलें । ( यदि व्याधेश्च मस्तकस्यापि पीडायामुदरस्य च ॥ ताम्रपत्र अभी कच्चे हों तो घीकुमारके रसमें घोटकर सोंठका चूर्ण ४ भाग, काली मिर्चका चूर्ण पुट लगाकर अच्छी तरह भस्म करलें । ) ४ भाग, मुहागेकी खील ६ भाग और शुद्ध बछ - इसे १ माषेकी मात्रानुसार शहद और घीके नाग ( मीठा तेलिया ) का चूर्ण १ भाग लेकर साथ देनेसे परिणामशूल नष्ट होता है । अन्य सबको एकत्र खरल करके यथाकम नागरबेलके For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597