Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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- AARAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAARANA.
रसपकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[४८३] त्रिनेत्राख्यो रसः सोयं माषं मध्वाज्यकैलिहेत्। (२७३०) त्रिनेत्राख्यो रसः (९) सैन्धवं जीरकं हिङ्ग मध्वाज्याभ्यां लिहेदनु॥ (रसें. चिं. । अ. ९; र. रा. सुं.; रसें. सा. सं.; पक्तिशूलहरं ख्यातं मासमात्रान संशयः॥
धन्वं. । मूत्र.) हरिणके सींगका चूर्ण, स्वर्णभस्म, ताम्रभस्म वङ्गं मूतं गन्धकं भावयित्वा और पारदभस्म (अभावमें रससिन्दूर) समान भाग लौहे पात्रे मर्द्रयेदेकघस्रम् । लेकर सबको एकदिन अदरकके रसमें घोटकर दर्वायष्टिगोक्षुरैः शाल्मलीभिगोला बनाकर सुखाकर उसे सम्पुट में बन्द करके Lषामध्ये भूधरे पाचयित्वा ॥ गजपुटमें फूंक दीजिये और स्वांग शीतल होनेपर तत्तद्रावैर्भावयित्वाऽस्य वल्लं निकालकर पीसकर रखिये। ..
दद्यात् शीतं पायसं वक्ष्यमाणम् । इसे एक माषेकी मात्रानुसार शहद और घीमें । दुर्वायष्टीशाल्मलीतोयदुग्धैमिलाकर चाटने और ऊपरसे से गा, जीरा और स्तुल्यैः कुर्यात् पायसं तबदीत ॥ हींगके समान भाग मिश्रित चूर्णको घी और प्रातःकाले शीतणनीयपाना- . शहद में मिलाकर चाटनेसे १ मासमें पक्तिशूल न्मत्रे जाते स्यात्सुखित्वं क्रमेण ॥ अवश्य नष्ट हो जाता है।
बङ्गभस्म, शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक समान (२७२९) त्रिनेत्ररसः (८)
भाग लेकर तीनोंकी कजली बनाफर उसे लोहेके ( रसें. चिं. । अ. ८; आ. वे. प्र.। अ. १) खरलमें १-१ दिन दूर्वा, मुलैठी, गोखरु और रसगन्धकताम्राणि सिन्धुवाररसैदिनम् ।। सेंभलके फूलों के रस अथवा काथमें घोटकर गोला मर्दयेदातपे पश्चात् बालुकायन्त्रमध्यगम् ॥
बनाकर उसे मूषामें बन्द करके भूधरपुटमें पकाइये। अन्धमूषागतं यामत्र तीब्रामिना पचेत् ।
तत्पश्चात् पुनः उपरोक्त औषधोंके रसमें घोटकर तद्गुञ्जा सर्वरोगेषु पर्णखण्डिकया सह ॥
३-३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये। दातव्या देहसिध्यर्थ पुष्टिवीर्यबलाय च ॥
___ इनमेंसे १-१ गोली प्रातःकाल ठण्डे पानीके शुद्र पारा, शुद् गन्धक और ताम्रभस्म साथ खिलाने और भोजनमें दूर्वाका रस, मुलैठीका समान भाग लेकर कजली बनाकर उसे १ दिन काथ और दूध समान भाग लेकर उसमें चावलों संभालके रसमें धूपमें घुटवाइये और फिर अन्ध
| की खीर बनाकर खिलानेसे मूत्रकृच्छ्र नष्ट होता मूषामें बन्द करके उसे बालुकायन्त्रमें रखकर ३ और मूत्र खुलकर आता है । पहर तीब्राग्नि पर पकाइये।
। (२७३१) त्रिनेत्राख्यो रसः (१०) ' इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार पानके साथ देने ।
(भै. र. । शो.) से समस्तरोग नष्ट होकर बलवीर्य की वृद्धि होती | टङ्गनं शोधितं गन्धं मृतशुल्वायसं रसम् । और शरीर पुष्ट होता है।
दिनैकमाईकद्रावैर्मथै लघुपुटें पचेत् ।।
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