Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
[ ४८४ ]
त्रिनेत्राख्यो रसो नाम चासाध्यं श्वयथुं जयेत् । विल्वमात्रं पिबेच्चानु एरण्ड शिखरीसमम् ॥
सुहागा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, लोहभस्म और शुद्ध पारद समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना लीजिये, पश्चात् उसमें अन्य चीजें मिलाकर सबको एक दिन अदरक के रसमें घोटकर गोला बनाकर सुखाकर उसे सम्पुट में बन्द करके लघुपुटमें फूंक दीजिये और स्वांग शीतल होनेपर निकालकर पीसकर रखिये ।
इसे ( १ से ३ रत्ती की मात्रानुसार ) अरण्डमूल और अपामार्ग (चिरचिटे) के ५ तोले काथके साथ सेवन करनेसे असाध्य शोथ भी नष्ट हो जाता है । ..
(२७३२) त्रिनेत्राख्यो रसः (११)
( र. र. । पाण्डु. )
जारितं स्वर्ण शुल्वं शङ्खं मृतं रसः । दिनैकं चार्द्रकद्रावैर्मरुद्धा पुढे पचेत् ॥ त्रिनेत्राख्यो रसो नाम चासाध्यं श्वयथुं जयेत् । शूलगुल्ममथाशसि नाशयत्याशु देहिनाम् ||
सुहागा, स्वर्णभस्म, ताम्र भस्म, शंख और पारद भस्म (अभाव में रस सिन्दूर ) समान भाग लेकर सबको १ दिन अद्रक के रस में घोटकर गोला बनाकर सुखाकर उसे सम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें फूंक दीजिए ।.
इसे (१ से ३ रत्तीकी मात्रानुसार ) सेवन करनेसे असाध्य शोथ, शूल, गुल्म और अर्शका नाश होता है ।
(अनुपान - पुनर्नवाका रस 1)
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[ तकारादि
(२७३३) त्रिपुरभैरवो रसः (१) (र. का. धे.; भै. र. र. चं.; धन्वं.; र. रा. सुं। ज्वर.; रसें. चि. । अ. ९; वृ. यो त । त. ६०) विषटङ्कवलिम्लेच्छदन्तीवीजं क्रमैधितम् । दन्त्यम्बुमर्दितं यामं रसस्त्रिपुरभैरवः || वल्लो व्योषेण चार्द्रस्य रसेन सितयाथवा । दत्तो नवज्वरं हन्ति मान्यमनिलशोथहा ॥ हन्ति शूलं सविष्टम्भमर्शासि कृमिजान्गदान् । पथ्यं तक्रेण भुञ्जीत रसेऽस्मिन् रोगहारिणि ।।
शुद्ध बछनाग ( मीठा तेलिया ) १ भाग, सुहागा २ भाग, शुद्ध गन्धक ३ भाग, ताम्र भस्म ४ भाग और शुद्ध जमालगोटा ५ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करके १ पहर दन्तीमूलके रसमें घोटकर ३ - ३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये ।
इनमें से १-१ गोली त्रिकुटा के चूर्ण या अद्रक के रस अथवा मिश्री के साथ देनेसे नवीनज्वर, अग्निमांद्य, वातजशोथ, शूल, कब्ज, अर्श और कृमिजन्य रोग, नष्ट होते हैं ।
पथ्य छाछ भात । नोट- यह रस रेचक है अत एव छोटे बच्चों और गर्भिणी स्त्रीको न देना चाहिये । (२७३४) त्रिपुरभैरवो रसः ( २ )
( र. प्र. सु. । अ. ८ ) सूतकं मरिचं शुण्ठी टङ्कणं चामृतं तथा । गन्धकं चैकचवारिवेदवह्निधराधराः ॥ चूर्णितो मधुना लीढो वाते त्रिपुरभैरवः ॥ शुद्ध पारद १ भाग, काली मिर्च ४ भाग, सोंठ ४ भाग सुहागेकी खील ३ भाग, शुद्ध बछनाग (मीठा तेलिया) १ भाग और शुद्ध गन्धक, १ भाग:
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