Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४७२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि (२६९४) तुत्थमुद्रिका (र.र.स.। पू.खं.अ.२)। तूतियाके विकारोंको शान्त करनेके लिये सत्वमेतत्समादाय खरभूनागसत्वयुक। जम्बीरी नीबूका स्वरस, धानकी खीलोंको पानीमें तन्मुद्रिका कृतस्पर्शा शूलनी तत्क्षणाद्भवेत् ॥ घोटकर, वह पानी अथवा लामज्जक (खसभेद)का चराचरं विषं भूतडाकिनीदृग्गतं जयेत् ।। पानी पीना चाहिये । मुद्रिकेयं विधातव्या दृष्टप्रत्ययकारिका ॥
(२६९६) तुत्थशोधनम् (१) रामवत्सुरसेनानी मुद्रितेपि तथाक्षरम् ।
(शा. सं. । म. ख. अ. ११; आ. वे. प्र. । अ. १२; हिमालयोत्तरे पार्चे अश्वकर्णोमहाद्रुमः ।।
भा. प्र.; र. सा. सं. । धातु प्र.; रसें. तत्रशूलं समुत्पन्नं तत्रैव विलयं गतम्।
चिं. म. । अ. ७) मन्त्रेणानेन मुद्राम्भो निपीतं सप्तमन्त्रितम् ॥
विष्ठया मर्दयेत्तुत्थं मार्जारककपोतयोः । सब शूलहरं प्रोक्तमिति भालुकिभाषितम् ।
दशांशं टङ्कणं दत्वा पचेन्मृदुपुटे ततः ॥ अनया मुद्रया तप्ततैलमग्नौ सुनिश्चितम् ॥ लेपितं हन्ति वेगेन शुलं यत्र कचिद्भवेत् ।
पुटं दन्नः पुटं क्षौद्रये तुत्थविशुद्धये ॥ सद्यः मूतिकरं नार्याः सद्यो नेत्ररुजापहम् ॥
तूतियामें उसका दसवांभाग सुहागा मिलाकर तूतियाका सत्व और खर भूनागसत्व' समान
उसे एक एक दिन बिल्ली और कबूतरकी विष्टाके भाग लेकर दोनोंको एकत्र करके अंगूठी बनवा
साथ खरल करके लघुपुटमें फूंक दीजिए, फिर लीजिये।
उसे दही और शहदमें पृथक् पृथक् घोटकर एक इस अंगूठीको छूनेसे ही सब प्रकारके शूल, एक पुट दीजिये । इस क्रियासे तृतिया शुद्ध हो विष और भूतविकार नष्ट हो जाते हैं। जाता है।
इस अंगूठीको सात बार पानीमें धोकर पीनेसे भी शूल नष्ट होता है । इसे थोड़ी देर
| (२६९७) तुत्यशोधनम् (२) तैलमें पकाकर इस तैलकी मालिशसे हर प्रकारका
(आयु. वे. प्र. । अ. १२; अनु. त. । को. २; शूल तुरन्त नष्ट हो जाता है।
र. मं. । अ. ३; यो. त. । त. १७) (इसका पानी पीनेसे) बच्चेका जन्म आसानी
ओतोर्विशा समं तुत्थं सक्षौद्रं टङ्कणाझियुक् । से हो जाता है और ( इसके पानीसे आंखें
त्रिधैव पुटितं शुद्धं वान्तिभ्रान्तिविवर्जितम् ।। धोनेसे ) नेत्ररोग नष्ट होते हैं। (२६९५) तुत्थविकारशान्तिः
४ भाग तूतियामें एक एक भाग सुहागा ( अनुपा. त.। को. २)
और बिलावकी विष्टा मिलाकर उसे शहदमें घोटकर जम्बीरस्वरसं वापि लाजा वारिसमन्विताः। । तीन लघुपुट देनेसे वह शुद्ध-वान्ति भ्रान्ति रहित लामज्जकजलं वापि पिवेत्तत्थकशान्तये ॥ हो जाता है ।
१ रसरत्नसमुच्चय पूर्वखण्ड अध्याय ५ देखिये ।
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