Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भाग:।
[४७३ )
AAAAAAAAAAVVVIRAVAANANAarvvvvnirnvvvvAANANIMAn
y levanvandnav
(२६९८) तुत्थशोधनम् (३) (रसायनसार) । तस्मिन् कटाहे खलु पश्चसेटी कृत्रिमं तु जले पात्यं क्षारं तस्याऽपनोदयेत् । द्वयोन्मितां सुत्रिफलां प्रपूर्य । धर्मशुष्कं विशुद्धं तत् योगयोजनकर्मकृत् ॥ मणप्रमाणं जलमत्र दद्यात्
अर्थ-बनावटी तूतियाको मिट्टीके पात्रमें संस्थापयेदातपयोग्यदेशे ॥ पानीमें घोलकर रख दे जब पानी स्थिर हो जाय यथाऽऽतपश्चन्द्रमरीचयश्च
और तूतिया तल भागमें बैठ जाय तब ऊपरसे वायुश्च तस्मिन्नभिसश्चरेयुः । नीबू और नौसादर' के खारी पानीको धीरे २ त्रिंशदिनं तत्समुपेक्ष्यमाणं निकालदे । बाद धूपमें सुखाकर काममें ले ॥१॥ तानं विशुद्धं खलु सेरकार्धम् ॥ (२६९९) तुत्यशोधनम् (४) ( रसायनसार ) तले विलग्नं समुपाददीत गोमूत्रे महिषीमूत्रेऽप्यजामूत्रे च तुत्थकम् ।। जलं विपकन्तु मसीमयं स्यात् । यामे यामे कथेत्तेन खनिजं शुद्धिमृच्छति ॥ तथा च नेत्रेषु हितं परं स्यात् ___अर्थ-गौके मूत्र, भैंसके मूत्र, और बकरीके प्रातः परिक्षालनतो नराणाम् ॥ मूत्रमें एक एक पहर पकानेसे खानका तूतिया शुद्ध हो जाता है ।
अर्थ-बहुत वैद्य नैपाली तामेकी तलाशमें (२७००) तुत्थसत्वपातनम् ।
इधर उधर भटकते फिरते हैं और नहीं मिलने पर ( र. र. स. । पू. खं. अ. २; आ. वे. प्र.। अ. १२) ताम्रभस्म बनानेमें हताश होकर बैठ जाते हैं। निम्बूद्रवाल्पटङ्काभ्यां मूषामध्ये निरुध्य च। उन्हीं महाशयोंके उपकारार्थ मैं तूतिया से तामा ताम्ररूपं परिध्मातं सत्वं मुश्चति सस्यकम् ॥ निकालनेकी विधि लिखता हूँ। यह तामां नैपाली
तूतियामें थोडासा (आठवां भाग ) सुहागा तांमेसे किसी अंश में कम नहीं है। अढ़ाई सेर मिलाकर उसे नीबूके रसमें घोटकर मूषामें बन्द | तूतियाको खूब पीसकर साफ छोटी लोहे की करके तेज़ अग्निपर धमानेसे उसमेंसे तांबेके समान कड़ाही (जैसी हलवाई लोग मावा (खोआ) बनाने सत्व निकल आता है।
के लिए साफ रखते हैं ) में विछाकर उस कड़ाही (२७०१) तुत्थात्ताम्रनिस्सारणविधिः
को एक बड़े लोहे के कड़ाहमें (यदि बड़ा लोहे ( रसायनसार ) अध्यर्द्धसेटद्वयमात्रतुत्थं
का कड़ाह न मिले तो बड़ी मट्टीको नाद से सम्पिष्य सुश्लक्ष्णं कटाहिकायाम् । | | भी काम चल सकता है) रखकर तूतिएके चूर्ण विस्तीर्यतामन्यकटाहमध्ये
| को कपड़ेसे ढंक दे । जिसमें तूतिया त्रिफलामें संस्थाप्य चाच्छाद्य पटेन तुत्थम् ॥ । न मिलजाय बाद कड़ाहमें दशसेर पक्का बिना
१ तूतिया बनानेमें नौसादर और नीबूका पानी पड़ता है और वह उसीमें रह जाता है । देखो "तुत्थनिर्माण विधिः"।
भा० ६०
For Private And Personal