Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४३५]
घटिकाद्वयमानेन शुद्धकल्कं प्रजायते । पश्चात्तं मर्दयेद्धीमान् तैलेनैरण्डजेन वै । चतुःषष्टयंशमानेन वेधयेच्छुल्वकं शुभम् ॥ बालुकायन्त्रमध्यस्थं पचेद्यामास्तु षोडशः। जायते प्रवरं तारं सर्वदोषविवर्जितम् ।। पश्चात्सत्वं समुद्धत्य मर्दयेदेकवासरम् । ___ स्वच्छ स्फटिकमणिके समान सुर्मिलको नीबूके अतसीतिलतैलेन काचकूप्यां निधापयेत् ।। रसके साथ मिट्टीके खर्पर (प्याले) में २ धड़ी तक पूर्ववत्पाचयेद्वह्नौ स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् । पकानेसे उसका कल्क (पिट्ठी) बन जाता है। अनेनैव प्रकारेण पुनरेवं तु कारयेत् ।।
__ इसमेंसे १ भाग कक ६४ भाग (पिघले कूपीतलस्थितं सत्वं ग्राह्यं चेत्मवरं सदा । हुवे) ताम्र में डालनेसे सर्वदोषरहित उत्तम चांदी | पोडशांशेन शुल्वस्थ बेधं कुर्यान्न संशयः ॥ बन जाती है।
___वर्की हरताल ८ पल (४० तोले) और शुद्ध (२६१८) तारक्रियायाः प्रकार: (३) पारा २ कर्ष (२॥ तोले) लेकर दोनोंको १ दिन
(र. प्र. सु. । अ. ११) नीबूके रसमें घोटें, तत्पश्चात् १ दिन अरण्डीके तालं तानं रीतिघोषं समांशं
तेलमें घोटकर कपरमिट्टी की हुई आतशी शीशीमें कुर्यादेवं गालितं ढालितं हि ।
भरकर १६ पहर बालुकायन्त्रमें पकावें तत्पश्चात् अम्ले वर्गे सप्तवारं प्रढाल्य.
शीशीकी तली में लगे हुवे सत्वको निकालकर १-१ पश्चायोज्यं तुल्यभागे च रूप्ये ।।
दिन अलसी और तिलके तैलमें घोटकर उक्त विधि शुद्धं रूप्यं षोडशाख्यं हि सम्यग्
से बालुकायन्त्रमें पकाएं और स्वांगशीतल होनेपर जातं दृष्टं नानृतम् सत्यमेतत् ॥
शीशीमें से औषधको निकालकर पुनः अलसी और उत्तम वर्की हरताल, शुद्ध ताम्र, पीतल और
तिलके तेलमें घोटकर बालुकायन्त्रमें पकाएं और कांसी समान भाग लेकर सबको एकत्र गलाकर ढाल लें और फिर उसे गला गलाकर सात बार
शीशीके स्वांगशीतल होनेपर उसकी तलीमें से अग्लवर्गमें' बुझावें । इसके पश्चात् उसमें समान
सत्वको निकालकर सुरक्षित रक्खें ।। भाग चांदी मिला दें तो शुद्ध पोडश (सर्वोत्तम)
यह सत्व १६ गुने तांबेको पिघलाकर उस चांदी बन जायगी। यह प्रयोग हमारा (श्लोक
में मिलानेसे सबकी चांदी बना देता है। कारका) देखा हुवा और सत्य है।
(२६२०) तारमारणम् (१) (अनु.त.को.१) (२६१९) तारक्रियायाः प्रकारः (४) शुकप्रियापीतकपत्रकल्के ___ (र. प्र. सु. । अ. ११)
चतुगुणे तारकमेव रुध्वा । पलाष्टमात्रं तालन्तु द्विकर्षप्रमितं रसम् ।। शरावके सम्पुटके पुटेच्च निम्बूरसेन सम्म वासकै प्रयत्नतः ॥ त्रिभिः पुटैरेव वराहसंज्ञैः॥
१ अम्लवर्ग–अम्लवेत, जम्बीरी नीबू, बिजौरा नीबू, नारंगी, तिन्तडी, इमलीका फल, चांगेरी, अनारदाना, करौंदा और अम्लबेत । (र. सा. सं.)
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