Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४६९]
__ नोट---- ढाककी भस्म हाण्डीमें दबा दबाकर | जब मूत्र और दूध सूख जाय तो उसमें क्रमश: भरनी चाहिये और आधी हाण्डी भस्मसे भर जाने । ११-१। तो० सत्यानाशीकी जड़ ( चोक )के पर उसपर हरतालका गोला रखकर उसके ऊपर चूर्ण, यवक्षार, सजीखार ( सोडा), धतूरेके क्षार, हाण्डीके गले तक भस्म भरदेनी चाहिये । पत्थरका चूना और पेठेके क्षारकी तह जमाकर (२६८५) तालेश्वरो रसः (लघुः) (८) रक्खें और अग्नि तेज़ करदें । जब हाण्डीमेंसे
(र. चि. म. । स्त. २; र. का.धे.। कुष्ठा.), ज्वाला निकल कर शान्त हो जाय, तथा धूम्र पलान्यादाय चत्वारि हरितालस्य चित्रकम् । निकलना भी बन्द हो जाय और हाण्डी अंगारके अभ्रक गन्धकं शुद्धं गिरिजञ्च पलद्वयम् ॥ समान लाल हो जाय तो अग्नि देना बन्द करदें हण्डिकान्तरगतं पूर्व चित्रकं धारयेत्सुधीः।।
और हाण्डीके स्वांगशीतल होनेपर उसमें से औषधपश्चाच्च तालकं दद्याद्गन्धकं तस्य चोपरि ॥ को निकालकर पीसकर रक्खे । अभ्रकञ्च पुनर्दद्यात्पश्चाद्याच्छिलाजत । । इसमें से ५ रत्ती मात्रानुसार यथोचित अनुपानगव्यं मूत्रं पुनर्दद्याद गव्यं क्षीरं पुनः क्षिपेत ॥ के साथ सेवन करनेसे जिसमें वमन होती हो, प्रवेश्य मूत्रं दुग्धश्च शनैर्वह्नौ च तद्रसे।
पीप बहता हो अङ्गुली और कान इत्यादि अङ्ग कर्षमात्राश्च हेमाहां यवक्षारश्च तत्समम् ॥
। गल गये हों, कीड़े पड़ गये हों और बदबू आती स्वर्जीक्षारं तथा दद्यात्क्षारं धत्तरजन्तथा।।
हो वह कुष्ट भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । पुनश्चूर्ण सितं दद्यात्कूष्माण्डक्षारमेव च ॥ (२६८६) तिक्तत्रयरस (र. रा. सु. । कास.) सर्वमेकत्र सम्पाच्य गतज्वालमधूमकम् । भस्मताम्राभ्रतीक्ष्णानां कासमर्दवरारसैः। तप्ताङ्गार निभं यावत्तावज्ज्वालाश्च दापयेत् ॥ मुनिजैर्वेतसाम्लेन दिनं मर्यश्च पीलितम् ॥ स्वागशीतं समाकृष्य दद्यात्तत्पश्चरक्तिकम् । मापार्द्ध पित्तकासातॊ भक्षेत्तिक्तत्रयो रसः ॥ कुष्ठं वमियुतं स्रावि पतिताङ्गश्च दुस्तरम् ॥ ताम्र भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म ओर अभ्रक गतश्रोत्राङ्गलिपायं विधुरं विवलस्वरम् ।
भस्म समान भाग लेकर सबको १-१ दिन यथा तथा विधं भूयः कृमिलं कुथितं धनम् ।।
कसौंदी, त्रिफला, अगस्ति ( अगथिया ) और नाशयत्यचिरेणायं लघुतालेश्वरो रसः॥
अम्लवेतके रसमें घोटकर आधा आधा माषेकी ___ कपरमिट्टी की हुई मज़बूत हाण्डीमें २ पल
गोलियां बना लीजिये । इनके सेवनसे पित्तज (१० तोले ) चीतेका चूर्ण बिछाकर उसपर
खांसी नष्ट होती है। ४ पल शुद्ध तबकी हरताल रक्खें, उसपर २ पल गन्धक, गन्धकके ऊपर २ पल अभ्रक और सबके (२६८७) तीक्ष्णमुखरसः (१) (रसे.मङ्ग.अ.१) ऊपर २ पल शिलाजीत रखकर हाण्डीमें १२-१२ तीक्ष्णं शुल्वसुरायसंच गगनं तापीरुहं तालकम। पल गोमूत्र और गोदुग्ध डालकर मन्दाग्निपर पकाएं, गोदन्तं रसराजमिश्रितसमं धृत्वा च खल्वे भिषा
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