Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४६८]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[तकारादि
ततो मुद्रां दृढं कुर्यादस्यिं रोधितं किल । (मात्रा-१-२ रती। अनुपान त्रिफला चतुर्यामं तु दीपाग्निं विद्याद्यामं हठानिना॥ काथ ।) स्वाङ्गशीतलमुद्धत्य भवेत्तालेश्वरो रसः।। (२६८४) तालेश्वरो रसः (७) पथ्यं मुद्गं तु शाल्यन्नं कुष्ठानष्टादशाञ्जयेत् ।। (वृ. यो. त. । त. ११८ )
१५ तोले वर्की हरतालको दोलायन्त्रविधिसे तालकं मर्दयेत्सम्यक ताम्बूलीपर्णवारिणा । पेठेके स्वरसमें मन्दाग्नि पर पकाइये; जब समस्त | त्रिदिनं मस्तुना मद्य दिनैकं पयसा रवेः ।। रस सूख जाय तो हरतालको निकालकर उसमें | तद्गोलं भाण्डमध्यस्थं किंशुकक्षारसंयुतम् । २॥ तोले शुद्ध पारा मिलाकर इतना घोटिये कि त्रिदिनं पाचयेत्सम्यक् मन्दमध्यहठामिना ।। नीलवर्ण कजली हो जाय । तत्पश्चात् उसे सेहुण्ड | तालभस्म समाकृष्य तण्डुलद्वयमात्रकम् । (सेंड-थोहर) के दूध, आकके दूध, बकरीके दूध; आकलं जातिपत्रश्च लवङ्ग जातिकाफलम् ।। बाबची, पातलगरुड़ी, अङ्कोल, पंवाड़, समुद्रफल, संयोज्य सपिषा जग्ध्वा सर्ववातकुलान्तकः। घृतकुमारी (ग्वारपाठा), भिलावा, त्रिफला, पुनर्नवा, वातरक्तं तथा कुष्ठं ग्रहणीश्च भगन्दरम् ॥ नीमकी छाल और सोंठमें से जिनका स्वरस मिल सर्वत्रणानिहन्त्याशु नाम्ना तालेश्वरो रसः॥ सके उनके स्वरस और बाकी औषधोंके काथकी शुद्ध वो हरतालको ३ दिन ताम्बूल (पान) पृथक् पृथक् ३-३ भावना देकर गोला बनाकर के रसमें और १-१ दिन दहीका तोह और सुखा लिजिये। तत्पश्चात् ७॥तोले कलीचूना लेकर आकके दूधमें घोटकर गोला बनाइये और उसे उसमेंसे चौथाई, कपर मिट्टी की हुई हाण्डीमें रखकर सुखाकर कपरमिट्टी की हुई हाण्डीमें ढाककी उसपर हरतालका गोला रख दिजिये और उसके राखके बीचमें रखकर, हाण्डीके मुखको शरावसे ऊपर बाकी चूना रखकर हाण्डीके गलेतक ग्वारपाठा | बन्द करके ३ दिन तक क्रमश: मृदु, मध्यम का गूदा भर दीजिये और उसके मुखपर शराव ढक और तीव्राग्नि पर पकाइये । तत्पश्चात् हाण्डीके कर जोड़को गुड़ चूनेसे बन्द करके उसपर कपड़ स्वांग शीतल होनेपर उसमें से हरताल भस्मको मिट्टी कर दीजिए और उसे सुखाकर चार पहर | निकाल लीजिये । इसीका नाम 'तालेश्वर रस' है। तक दीपकी लोके समान मन्दाग्नि पर तथा एक अकरकरा, जावित्री, लौंग और जायफलका पहर तीवाग्नि पर पकाइये और हाण्डीके स्वांग- समान भाग चूर्ण एकत्र मिलाकर खरल, करें । शीतल होनेपर उसमें से गोलेको निकालकर पीस
(१॥ माषा) यह चूर्ण और २ चावल उपरोक्त कर रखिये।
भस्म एकत्र मिलाकर धीमें मिलाकर चाटनेसे ' यह 'तालेश्वर रस' १८ प्रकारके कुष्टोंका समस्त वातव्याधि, वातरक्त, कुष्ठ, संग्रहणी, नाश करता है। पथ्य-मूंगकी दाल भात । भगन्दर और सब प्रकारके व्रण नष्ट होते हैं।
१ त्रिदिनमिति पाठान्तरम
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