Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४६६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
पुनर्नवा और चीतेके पत्तोंके बीचमें रखकर भूधर शोधयित्वा तदम्लेन दनालोडथ विमर्दयेत् । पुटमें पकाइये।
| खल्वे लौहमये वापि गाढं यामद्वयं पुनः ।। इसे पानमें रखकर खाना चाहिये। पुननेवाया क्षारेण संयोज्य घनतां नयेत ।
अनपान—बातव्याधिमें हींग, जम्बीरी दधि किञ्चित् पुनर्दत्त्वा घनीभूतं निवेशयेत् ॥ नीबूका रस और अरण्डीका तैल।
स्थाल्यां दृढतरायां च क्षारे पौनर्णवे पुनः । ओजके क्षय होने में-महुवेका स्वरस, सेंधा, ।
| रोटिकासदृशं कृत्वा शरावेण पिधापयेत् ।।
पचेत्तावत् भवेत्क्षारं शङ्खकुन्देन्दु सन्निभम् । बच और त्रिकुटाका चूर्ण ।
स्वाङ्गशीतं समुद्धत्य पुनरग्नौ परीक्षयेत् ॥ सूजनमें-चावलोंका पानी ।
क्षिप्तमग्नौ च निधूमं दृश्यते न विलीयते । कुष्टमें-घृत अथवा धारोष्ण दूध ।।
तदा सिद्धि विजानीयात् योजयेत् सर्वकर्मसु ॥ कामलामें—अद्रकका रस ।
एवं सिद्धेन तालेन गन्धतुल्येन मेलयेत् । यह रस समस्त प्रकारके कुष्ठोंको नष्ट करता है।
द्वयोस्तुल्यं जीर्णतानं बालुकायन्त्रपाचितम् ।। ( मात्रा—१-२ रत्ती ।)
अयं तालेश्वरो नाम रसः परमदुर्लभः । (२६८०) तालेश्वररसः (३) (र.रा. सु.।ज्वरा.) हन्यात कुष्ठान्यशेषाणि वातशोणितनाशनः॥ सम्मघ रम्भासलिलेन तालं
वातमण्डलमत्युग्रं स्फुटितं गलितं तथा । चूर्णेन तुल्यं दिवसत्रयेण । कुष्ठरोगं सर्वजातं नाशयेदविकल्पतः ॥ शुद्धं सखण्डं विनिहन्ति मुद्गमानं दुष्टत्रणं च वीसर्प त्वदोषानाशु नाशयेत् ।
पयोनाशि नयेत तापम् ।। । वातमण्डलकुष्ठानामौषधं नास्त्यतः परम् ॥
शुद्ध हरताल और पत्थरका चूना समान दृष्टयोगशतासाध्यरोगवारणकेसरी ।। भाग लेकर दोनोंको १ दिन केलेके रसमें धोटकर |
वर्की हरतालके पत्र अलग अलग करके उन्हें मूंगके दानेके समान गोलियां बना लीजिये।
कपड़ेमें बांधकर दोलायन्त्र विधिसे १-१ दिन इनमेंसे १-१ गोली खाण्डके साथ खिलाने
। कुम्हेड़े (पेठे) के रस, चूनेके पानी, और तैलमें और दधभात पर रखनेसे ३ दिनमें घर नष्ट हो स्वेदित करें फिर उन्हें काञ्चीसे धोकर लोहेके जाता है ।
खरलमें डालकर दो पहर तक दहीके साथ घोटं, . .... ( यह गोलियां शीतज्वर-म्लरियाक लिए। फिर उसमें थोडासा (आठवां भाग) पुनर्नवाका उत्तम प्रतीत होती हैं ।)
क्षार मिलाकर थोड़ा दही डालकर धोटें । जब (२६८१) तालेश्वरो रसः(४) (रसे.चिं.।अ.९) गाढा हो जाय तो उसकी टिकिया बनाकर सुखामम्यकपत्रीकृतं तालं कूष्माण्डसलिले शनैः। कर उसे कपड़मिट्टी की हुई हाण्डीमें रखकर उसके चूर्णोदके पृथक तैले दोलायन्त्रे दिन दिनम्॥ ऊपर पुनर्नवाकी राख हाण्डीके गले तक भर दें
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