Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४६५]
समस्त मूत्र जल जाने तक पकाइये और फिर उसे ठण्डा | तत्पश्चात् यन्त्रके स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे करके उसमें ३० सेर गन्धकके टुकड़े और सत्वकी औषधको निकालकर पीसकर रक्खें । बराबर सुहागा मिलाकर बड़े मूषामें भरकर तीव्राग्नि बच, कूठ, हल्दी, सेंधानमक, सुहागेकी खील, पर धमाइये तो विशुद्ध सत्व निकल आयेगा। शुद्ध मीठा तेलिया, पाठा, कलिहारीकी जड़, और
१ भाग यह सत्व और ३० भाग उत्तम त्रिकुटेका चूर्ण १-१ कर्ष लेकर एकत्र घोटकर पीतलको एकत्र मिलाकर मूषामें रखकर तीब्राग्निपर सबको १ दिन भंगरेके रसमें घोटें । १ माषा धमाइये और जब पीतल पिघल जाय तो उसमें यह अनुपान और २ रत्ती उपरोक्त रस एकत्र थोडीसी चांदी डाल दीजिए । इस क्रियासे समस्त मिलाकर सेवन करनेसे क्षतज खांसी, श्वास, पीतलकी उत्तम, चन्द्रमाके समान उज्वल चांदी हिचकी, स्वरभङ्ग ( गला बैठना) और खांसीका बन जायगी।
नाश होता है। (२६७८) तालेश्वररसः (१) (र. र. । कास.) । (२६७९) तालेश्वररसः (२) रसपादं मृतं तारं शिलाताले चतुर्गुणे।। (र. र. स. । उ. खं. अ. २०) वासागोक्षुरसत्वाभ्यां मर्दयेत्प्रहरद्वयम् ॥
हरितालपले द्वे द्वे द्रंक्षणे रसगन्धयोः । द्वियामं वालुकायन्त्रे स्वेद्यमादाय चूर्णयेत् । ककटीपत्रसारेण पिष्टं ताम्रमयोरजः ॥ गुञ्जाद्वयं निहन्त्याशु कासं श्वासं क्षतोद्भवम्॥
पञ्चशो मर्दितं धात्रीकुक्कुटीरसमाक्षिकैः । रसस्तालेश्वरो नाम्ना अनुपानं च कथ्यते ।
वर्षाभूचित्रपत्राढ्यं मूषागर्भे निवेशितम् ॥ वचा कुष्ठहरिद्राभिः सैन्धवं टङ्कणं विषम् ॥
ण्टेन असोते। सपाठालाङ्गलीव्योषं चाक्षं प्रत्येकभागकम् ।
हिजम्बीरवातारितैलैः पवनपीडिते ॥ भावितं भृङ्गराजेन दिनैकं तं च भक्षयेत् ॥
माधूकसारसिन्धूत्थवचाव्योहतौजसि । माषं तालेश्वरो नाम्ना हिकावैस्वर्यकासजित् ॥
शोफे भक्ताम्बुना कुष्ठे घृतेन पयसाऽथ वा ।। __ शुद्ध पारा १ भाग, चांदी भस्म चौथाई भाग धारोष्णेनाकस्यापि कामलायां रसेन च ।
और शुद्र हरिताल तथा शुद्ध मैनसिल ४-४ रसस्तालेश्वराख्योयं सर्वकुष्ठहरः परः॥ भाग लेकर मैनसिल और हरतालका महीन चूर्ण शुद्र वर्की हरताल १० तोले तथा पारा, करें और फिर सब चीजों को एकत्र मिलाकर गन्धक, संभलके पत्तोंके रसमें घुटी हुई ताम्रभस्म घोटं । तत्पश्चात् उसे २-२ पहर बासा और और लोह भस्म ११-१। तोला लेकर सबको गोखरुके रसमें घोटकर गोला बनाएं और उसे एकत्र खरल करके आमला और सेंभलके पत्तों के सम्पुट में बन्द करके उस सम्पुटको बालुकायन्त्रके रस तथा शहदकी ५-५ भावना देकर गोला बोचमें रखकर २ पहर तक स्वेदित करें। । बना लीजिये और फिर उसे एक मूषाके अन्दर
भा० ५९
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