Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४६१]
शरीर कान्तिमान हो जाता है; एवं बल, बुद्धि, श्वेत कूष्माण्ड ( पेठा-भतुआ )के मध्यमें दृष्टि और कामशक्ति इत्यादिकी वृद्धि होती है। छटाँक से पावभर तक तबकिया हरतालको रखकर ___ हरताल ४ प्रकारकी मानी गई है-१ बुगदादी और उसी पेठेके टुकड़ेसे छिद्रको बन्द करके उस २ गोदन्ती, ३ तबकी और ४ पिण्डहरताल । | पेठेको लोहे की कड़ाहीमें रखकर भट्टीपर कड़ाहीको इनमें बुगदादी हरताल सबसे अच्छी होती है, चढादे और मध्याग्नि (न मन्दी न तेज माफिक गोदन्ती में उससे कम गुण होते हैं, तबकी की अग्नि ) दे । जब पेठा जलते जलते हरितालके गोदन्तीसे भी कम गुणवाली और पिण्ड हरताल | समीप तक कड़ाहीका पेंदा आ लगे तब उस सबसे निकृष्ट होती है।
कड़ाहीको जमोनपर उतार दे। इस प्रकार तीन (२६६९) तालवटिका (र. चं.। रसायन.)
बार पेठेमें स्वेदन करनेसे तबकिया हरिताल शुद्ध हो अश्वगन्धाहरीतालं हिङ्गुलं विजयायुतम् ।
जाती है । परन्तु यह स्मरण रहे कि पेठेके जिस गोदुग्धेन समं पेष्यं वटिकां बल्लमात्रकाम् ।। छिद्रद्वारा हरितालको घुसाकर रखा है उस छिद्रको ताम्बूले भक्षयेत्पातश्चत्वारिंशदिने तथा।।
कढाहीके पेंदेकी तरफ न रखे,किन्तु ऊपर आकाशकी मत्तमातङ्गवीर्यस्तु वायुतुल्यपराक्रमः ॥
तरफ रखे, नहीं तो उसी छिद्रद्वारा सम्पूर्ण पेठेका गृध्रदृष्टिर्भवेत्तस्य वराहश्रवणोपमः ।
पानी कडाहीमें गिर जायगा तो हरितालका ठीक जायते भास्करीकान्तिर्मकरध्वजवल्लभा॥ स्वेदन नहीं होगा । यह संक्षेपसे हरितालकी ___असगन्ध, हरतालभस्म, शुद्ध हिङ्गल (शंग- पहिली शुद्धि हुई । अथवा एक सेर पत्थरके बिना रफ) और भांग समान भाग लेकर गोदग्धमें । बुझे हुए चूनेमें चार सेर पानी डालकर दोलायन्त्र घोटकर ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये। विधिसे हरतालकी पोटरीको लटकाकर एक एक इन्हें पानमें रखकर निरन्तर ४० दिन तक नित्य | पहर तक मन्दाग्निसे तीनबार स्वेदन करनेसे भी प्रति सेवन करनेसे हाथीके समान वीर्य, वायुके । तबकिया हरतालकी शुद्धि हो जाती है । अथवा समान पराक्रम, गृध्रके समान दृष्टि, शूकरके समान तेल, मट्ठा, गोमूत्र, कांजी, और कुलथीका काढा इन श्रवणशक्ति और सूर्य के समान कान्ति प्राप्त होती है। पाँचों चीजोंमें दोलायन्त्र विधिसे एक एक पहर (२६७०) तालशुद्धिः ( रसायनसार।) पकानेसे तबकिया हरितालकी उत्तम शुद्धि होती है। कटायां स्थापिते श्वेते कूष्माण्डत्रितये धृतम् ।
( रसायनसारसे उद्धृत) तालं मध्यग्निना स्विनं शुद्धिं याति समासतः॥ (२६७१) तालशोधनम् सुधापानीयमध्ये वा दोलायन्त्रेऽवलम्बितम्। (र. र. स. । पू. ख.; र. प्र. सु. । अ. ६) प्रहरद्वितयं पाच्यं तालं तेन विशुद्धयति ॥ स्विन्नं कूष्माण्डतोये वा तिलक्षारजलेऽपि वा। तैले तक्रे गवां मूत्रे काजिके च कुलत्थजे। तोये वा चूर्णसंयुक्ते दोलायन्त्रेण शुध्यति ॥ यामे यामे पचेत्तेन शुद्धिं याति विशेषतः॥ । हरितालको दोलायन्त्रविधिसे पेठेके रस, तिल
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