Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४१४]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
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ताम्रपत्राणि सूक्ष्माणि गोमूत्रे पश्चयामकम् । करके उस पर १ अंगुल मोटा मिट्टीका लेप कर शिवा रसेन भाण्डे तद्विगुणं देहि गन्धकम् ।। दीजिये और सुखाकर गजपुटमें फूंक दीजिये। अम्लपर्णी प्रपिष्ट्वाथ ह्याभेतो देहि ताम्रके। जब गोला स्वांग शीतल हो जाय तो उसके सम्यङ् निरुध्य भाण्डे तममिं ज्वालय यामकम् ॥ भीतरसे तात्रभस्मको सावधानी पूर्वक निकालकर भस्मी भवति तानं तद्यथेष्ट विनियोजयेत् । पीसकर रखिये । यह भस्म वमन, भ्रान्ति और सूताद्विगुणितं ताम्रपत्रं कन्यारसैप्लतम् ॥ विरेकादि ताम्रदोषोंसे मुक्त होती है । पिष्ट्वा तुल्येन बलिना भाण्डमध्ये विनिक्षिपेत् ।
प्रथम तात्रके बारीक पत्रोंको ५ पहर तक छन्नं शरावकेणैतत्तदूर्घ लवणं त्यजेत् ॥
दोलायन्त्र विविसे गोमूत्र में पकाइये फिर १ भाग मुखे शरावकं दत्वा वह्नि यामचतुष्टयम् ।
पारद और २ भाग गन्धककी कज ठीको अम्लपर्णी अवचूर्येव तच्छुल्वं वल्लमात्र प्रयोजयेत् ॥
के रसमें घोट कर कजलीके बराबर उपरोक्त ताम्रपिप्पलीमधुना साधे सर्वरोगेषु योजयेत् ।।
पत्रों पर लेप कर दीजिये और इ हें एक हाण्डीमें श्वासं कासं क्षयं पाण्डं अग्निमान्धमरोचकम् ॥
रखकर शराबसे ढक दीजिए तथा सन्धिको गुड़ गुल्मप्लीहयकृन्मूर्छाशूलं च पक्तिसंज्ञकम् ।।
चूनेसे बन्द करके हाण्डीमें रेत भर दीजिये और दोषत्रयसमुद्भतानामयाञ्जयति ध्रुवम् ॥
फिर उसे भट्टीपर चढ़ाकर एक पहरकी अग्नि रोगानुपानसहितं जयेद्धातुगतं ज्वरम् ।।
दीजिये । जब हाण्डी स्वांग शीतल हो जाय तो रसे रसायने ताम्र योजयेयुक्तमात्रया ॥
उसके भीतरसे ताम्रको निकालकर पिसवाकर रख ५ तोले पारद और ५ तोले गन्धककी
लीजिये । इस प्रकार उत्तम भस्म बन जाती है। कजली करके नीबूके रस में धोटकर उसे १० तोले शुद्ध ताम्रके बारीक पत्रोंपर लेप कर दीजिये और १ भाग पारद और १ भाग गन्धककी उन्हें दो शरावोंमें सम्पुट करके गजपुटकी अग्नि | कजलीको घृतकुमारी ( ग्वारपाठा )के रसमें घोटदीजिये । इसी प्रकार ३ पुट देनेसे तानकी भस्म कर २ भाग शुद्ध ताम्रपत्रोंपर लेप करके इन्हें हो जाती है । अब इस भस्मको नीबूके रस हा में रखिये और शरावसे ढककर जोड़को अथवा अन्य किसी अम्ल रसमें घोटकर गोला गुड़ चूनेसे बन्द करके हाण्डी में मुंह तक सेंधा बनाइये और उसे सुखाकर उसके ऊपर सूरण नमकका चूर्ण भर दीजिये और हाण्डीके मुखपर ( जमीकंद )को पीसकर ३-४ अंगुल मोटा लेप शराव ढककर उस पर ३-४ कपड़मिट्टी कर कर दीजिये अथवा जिमी कन्दको भीतरसे खाली दीजिये तथा सुखाकर भट्टीपर चढ़ाकर ४ पहरकी करके उसके भीतर ताम्रभस्मके गोलेको रखकर अग्नि दीजिये । जब हाण्डी म्वांगशीतल हो उसके मुखको जिमीकन्दके ही टुक से बन्द कर | जाय तो उसके भीतरसे तात्र भम्मको निकालकर दीजिये और उसके ऊपर ३-४ कपरमिट्टी । पीस कर रखिये ।
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