Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
(२५९१) ताम्रमारणम् (१) | सन्धिको बन्द करके हाण्डीको मुंहतक बालरेतसे ( शा. सं. । म. ख. अ. ११; यो. चि. म.। भरकर ऊपर एक शराव ढककर उसकी सन्धिको
____ अ. ८; भा. प्र. । पूर्व खं.) राख, और सेंधा नमकको पानीमें मिलाकर उससे सूक्ष्माणि ताम्रपत्राणि कृत्वा संस्वेदयेद्बुधः। बन्द कर दीजिये । और मुखाकर ४ पहर वासरत्रयमम्लेन ततः खल्वे विनिक्षिपेत् ॥ तक क्रमश: मृदु मध्यम और तीवाग्नि पादांशं सूतकं दत्वा याममम्लेन मर्दयेत् ।। दीजिए तत्पश्चात् हाण्डीके स्वांग शीतल ततः उद्धत्य पत्राणि लेपयेद द्विगुणेन च ॥ होने पर उसमेंसे ताम्रको निकालकर १ गन्धकेनाम्लघृष्टेन तस्य कुर्याच गोलकम् । दिन जिमिकन्द ( सूरण )के रसमें घोटकर और ततःपिष्ट्वा च मीनाक्षीं चाङ्गेरी वा पुनर्नवाम् ॥ गोला बनाकर उसके ऊपर घीमें पिसे हुवे ताम्रसे तत्कल्केन बहिर्गोलं लेपयेदङ्गलोन्मितम् । आधे गन्धकका लेप करके सम्पुट में बन्द करके धृत्वा तद्गोलकं भाण्डे शरावेण च रोधयेत् ॥ गजपुटमें फूंक दीजिये । स्वांग शीतल होने पर बालुकाभिः प्रपूर्याथ विभूतिलवणाम्बुभिः। ताम्र भस्मको निकालकर पीसकर रख लीजिये । दत्त्वा भाण्डमुखे मुद्रां ततश्चुल्ल्यां विपाचयेत्॥ इस प्रकार ताम्रकी अत्युत्तम भस्म बन जाती क्रमवृद्धयग्निना सम्यग्यावद्यामचतुष्टयम् । है जिससे वमन, भ्रान्ति, क्लम और मूर्छादि विकार स्वाङ्गशीतलमुद्धृत्य मर्दयेत्मरणद्रवैः ।। कभी नहीं होते। दिनैकं गोलकं कुर्यादर्धगन्धेन लेपयेत् । (२५९२) ताम्रमारणम् (२) (र.प्र.सु.।अ.४) सघृतेन ततो मूषां पुटे गजपुटे पचेत् ॥ कृत्वा ताम्रस्य पत्राणि कन्यापत्रे निवेशयेत् । स्वागशीतं समुद्धत्य मृतं पानं शुभं भवेत् । कुकुटाख्ये पुदे सम्यग्पुटयेत्तदनन्तरम् ।। वान्तिं भ्रान्ति क्लमं मूछी न करोति कदाच न॥ मूतगन्धकयोः पिष्टिं कार्या चातिमनोरमा ।
ताम्बेके बारीक पत्रोंको तीन दिन तक विमद्य निम्बुतोयेन तानि पत्राणि लेपयेत् ॥ दोलायन्त्र विधिसे नीबूके रस या काञ्जीमें पकाइये स्थालीमध्ये निरुन्ध्याथ पवेद्यामचतुष्टयम् । फिर उन्हें खरलमें डालकर तथा उनसे चौथाई पञ्चदोपविनिर्मुक्तं शुल्वं तेनैव जायते ॥ पारा डालकर १ पहर तक नीबूका रस डाल ताम्रके शुद्ध पत्रोंको घृतकुमारी (ग्वार पाठा) डालकर घोटिये । तत्पश्चात् पत्रोंसे दो गुने आमला- के भीतर घुसाकर सम्पुटमें बन्द करके कुक्कुटपुट सार गन्धकको नीबूके रसमें पीसकर उनपर लेप की अग्नि दीजिये। तत्पश्चात् ताम्रके बराबर पारे कर दीजिये और उनका गोला बनाकर उसपर गन्धककी कजलीको नीबूके रसमें घोटकर उन मीनाक्षी, चांगेरी (चूका-चौपतिया) या पुनर्नवाको । पत्रों पर लेप कर दीजिये और उन्हें एक हाण्डीमें पीसकर उसका १ अंगुल मोटा लेप करके सुखा- रखकर ऊपरसे शराव ढककर सन्धिको गुड़चूनेसे कर हाण्डीमें रखकर शराबसे ढक दीजिये और बन्द कर दीजिये और उस पर कपरमिट्टी करके
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