Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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द्वितीयो भागः ।
रसप्रकरणम् ]
तस्मात्ताम्रविशुद्धावायतिपश्येन वैद्यवर्येण । | अणुमात्रमपि च नैव प्रमादयोगो विधातव्यः | ८ |
अर्थ --- ताम्र भस्म बनानेके लिए लाल वर्णका नैपाली ताम्र लेना चाहिए, आजकल सबही शहरों में नैपाली ताम्रके बने हुए पुराने बरतन मिलते हैं, उन बरतनोंका ताम्बा भस्मके लिए अच्छा होता है; उसके पतले पतले पत्र बनवाकर गत आठ ( वान्ति, भ्रान्ति, ग्लानि, दाह, शूल, कण्डू, रेचन, वीर्यनाश ), दोषोंको दूर करने के लिए पत्रों को अग्निमें निष्टप्त करके ( खूब तपाकर ) इन बारह चीजों में सात सात बार बुझावे । बारह चीजों के नाम ये हैं- तिलका अथवा सरसों का तेल, गौका या भैंसका मट्ठा, गोमूत्र, कांजी, कुलथीके बीजका काथ, इमलीकी छालका अथवा पत्तोंका
काथ, नीबू का रस, घृतकुमारी ( ग्वारका पाठा ) का स्वरस, सूरण ( जिमिकन्द ) का स्वरस, गौका 'दूध ( गौका दूध नहीं मिले तो बकरी या भैंस के दूधसे भी काम चल सकता है ), नारियलका पानी ( जो गोले के भीतर रहता है ), और सहत ॥ १ || २ || ३ || यदि सूरणका स्वरस नहीं मिले तो सूरणके कन्दमें ही ताम्रपत्रोंको रखकर तीन बार गजपुट देने से शुद्धि हो सकती है ॥ ४ ॥ यदि नारियलका पानी नहीं मिले तो नारियलके तेल में भी तीन बार पन्नोंको बुझानेसे काम चल सक्ता है ||५|| सबही धातुओंकी शुद्धि शास्त्रमें बतलाई गई है उसको गुणवृद्धि करनेके लिए वैद्य लोगोंको करना चाहिए, यह तो प्रसिद्ध ही है; परन्तु और
।
१ रसेन्द्र सारसंग्रहमें अर्कदुग्ध लिखा है लिखा । केवल गोमूत्र में स्वेदन करना लिखा है ।
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धातुओंकी शुद्धि में कुछ कमी रहनेपर भी उतना नुकसान नहीं होता जितना कि ताम्रशुद्धि में कुछ न्यूनता रह जानेसे वान्ति, भ्रान्ति आदि दोष उपस्थित होते हैं; इस लिए वैद्योंसे हमारी सानुरोध प्रार्थना है कि अपनी भलाई चाहनेवाले वैद्यवर ताम्रशुद्विमें किञ्चिन्मात्र भी आलस्य तथा प्रमाद न करें क्यों कि शास्त्रोंमें लिखा है कि
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न विषं विषमित्याहुस्ताम्रन्तु विषमुच्यते । एको दोषो विषे सम्यक् ताम्रत्वष्टौ प्रकीर्तिताः।। (२६००) ताम्रशुद्धिः
( वृ. यो. त. । त. ४१; यो. र. । भा. १; आ. वे. प्र. । अ. ११; सें. सा. सं. ) वज्री दुग्धैः सलवणैस्ताम्रपत्रं विलेपयेत् । arat सन्ताप्य निर्गुण्डीरसैः संसेचये त्रिशः ॥ स्नुह्यर्क क्षीरसेचैर्वा शुल्वशुद्धिः प्रजायते ॥
अन्यच्च
गोमूत्रेण पचेद्यामं ताम्रपत्रं दृढाशिना । साम्लक्षारेण संशुद्धिं ताम्रं प्रामोति सर्वथा ||
तांबे के पत्रोंपर थोहर ( सेंड - सेहुंड ) के दूधमें सेंधा नमक पीसकर लेप करके उन्हे अग्नि में तपा तपाकर संभालुके रसमें, अथवा थोहर या आक के दूधमें ३ बार बुझानेसे वह शुद्ध हो जाते हैं ।
अथवा गोमूत्रमें थोड़ा नीबू का रस और जवाखार मिलाकर उसमें तांबेके पत्रोंको दोलायन्त्र विधिसे १ पहर तक खूब तेज़ आगपर पकाने से भी वह शुद्ध हो जाता हैं ।
रसेन्द सा. सं. में अम्ल और क्षार नहीं
२
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