Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम्
द्वितीयो भागः।
. [३३७] (२३२३) तिलादिप्रयोगः (यो. स.। स. ४) (२३२६) तिलाद्यं चूर्णम् (ग. नि. चूर्णा.) हैयङ्गवीयेन समं तिलानां
तिलकर्कन्धुलाजानां चूर्ण मध्वाज्यलेहितम् । चूर्ण युतं शरिया निहन्यात् ।। क्षीरानुपानं मासेन शोषघ्नं नास्त्यतःपरम् ॥ अशशि दुष्टान्यपि पित्तजानि
तिल, बेरको गुठलीकी गिरी, और धानकी दिनैरन पैश्च चिरन्तनानि ।। । खीलों के समान भाग मिश्रित चूर्णको शहद और
काले तिलोंका चूर्ण और खांड समान भाग | घीमें मिलाकर चाटकर ऊपरसे दूध पीनेसे १ मासमें मिलाकर गायके नवनीत (नौनी धी-मस्का) के शोष रोग नष्ट हो जाता है । शोषके लिए. इससे साथ चाटनेसे पुरानी, दुष्ट पित्तज बवासीर नष्ट अच्छी अन्य एक भी औषध नहीं है। होती है।
(मात्रा-२ तोलेसे ३ तोले तक। धी १ (२३२४) तिलादिप्रयोगः
तोला । शहद ४ तोले ) (वै. म. र. । प. १;. मा.; च. द.; वं. से. । अर्श.) नोट-यह चूर्ण बमनके लिए भी अत्युत्तम है। तिलभल्लातकं पथ्या गुडश्चेति समांशिकम्। (२३२७) तुगाचूर्णम् (वृ. नि. र. । बा. रो.) दुर्नामकासश्वासनं प्लीह पाण्डुज्वरापहम् ॥ तुगां क्षौदैश्च संलिह्याच्छासकासौ शिशोर्जयेत्।
तिल, शुद्ध भिलावा, हर्र और गुड़ समान । बंसलोचन के चूर्णको शहद में मिलाकर भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। इसे यथोचित चटानेसे बालकोंका श्वास और खांसी नष्ट होती है। (१ तोला तक ) मात्रानुसार (गर्म पानी के साथ) (२३२८) तुम्बर्वादिकं चूर्णम् . सेवन करने से बवासीर, खांसी, श्वास, तिल्ली. (शा. सं. | खं. २ अ. ४; यो. चि, । अ. २; पाण्डु और ज्वर नष्ट होता है।
__ वृ. यो. त.। त. ९४; यो. र.; ग. नि.;
__ वृ. नि. र. । उदर.) (२३२५) तिलादिप्रयोगः
तुम्बरूणि त्रिलवणं यवानी पुष्कराहयम् । (यो. त. । त. ६२; वं. से. । कु.)
यवक्षाराभया हिङ्ग विडङ्गानि समानि च ॥ तिलाज्यत्रिफलाक्षौद्रव्योषभल्लातशर्कराः ।
त्रितत्रिभागा विज्ञेया मूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । वृष्या सप्तसमा मेध्य कुष्ठहा कामचारिणः ॥
| पिबेदुष्णेन तोयेन यवकाथेन वा पिबेत् ।। _ तिल, त्रिफला, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल)
ला, त्रिकुटा (साउ, मिच, पापल) जयेत्सर्वाणिशूलानि गुल्माध्मानोदराणि च ॥x शुद्ध भिलावा और खांड तथा घी और शहद १--
____ कुस्तुम्बरु, सेंधानमक, विडनमक, कालानमक, १ भाग एवं असगन्ध ७ भाग लेकर चूर्णयोग्य अजवायन, पोखरमूल, जवाखार, हर, हींग (भुना चीजोंका चूर्ण करके सबको एकत्र मिलाकर सेवन हुवा ) और बायबिडंग । इन सबका चूर्ण १--१ करनेसे कुष्ठ का नाश होता तथा मेधा की वृद्धि भाग और निसोतका चूर्ण ३ भाग लेकर एकत्र होती है।
मिला लीजिए। १ योगसमुच्चय में इसी प्रयोग में शुण्ठि भी लिखी है। x ७. यो. त, में मिर्च और त्रिकुटा अधिक हैं।
भा.४३
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